Book Title: Nandanvan Kalpataru 2016 05 SrNo 35
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
यस्याऽऽर्तत्राणकार्यात् सुरनरविभुभिः कीर्तिरुद्गीयतेऽत्र, दीनानां प्रार्थनायाममरतरुसमः पार्श्ववघ्नभाजाम् । धर्मध्यानस्य कर्ता विशदगुणधरो मुक्तिमार्गे निषण्णः, श्रीआनन्दाहुसूरिर्भवतु स भवतां नित्यमानन्दहेतुः ।।७।। शस्यं यस्याऽऽस्यमासीद्रविरिव विमलं बोधयत् सत्सरोजं, चित्रं तापाद्धि रिक्तं नृदिविजशरणं प्राणिनां पङ्कहारि । सस्यं कल्याणरूपं निजकिरणगणैर्वर्द्धते स्म प्रवेगात्, श्रीआनन्दाहुसूरिर्भवतु स भवतां नित्यमानन्दहेतुः ।।८।। सूरिश्रीकमलाख्यस्य चरणोपासकेन हि । लब्धिविजयबालेन रचितमिदमष्टकम् ।।९।।
* * *

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110