Book Title: Nandanvan Kalpataru 2010 10 SrNo 25
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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भविकबोधक! विषयरोधक! विगतबोधकचित्तकं समयबोधन! सकलशोधन! विविधबाधनसाधनम् ॥ भवविमोचन! विगतशोचन! विमललोचन! चञ्चलं सदयमुद्धर जिन! यशोऽभिधमशरणं शरणागतम् ॥४॥
गुणसमुद्र! महत्त्वमुद्र! विनिद्रसम्पदमुद्रण ! सकलसज्जनजननतारणचरणचारणकारण! ॥ असमसंवर! भविजनम्भर विजितशम्बरशातन! सदयमुद्धर जिन! यशोऽभिधमशरणं शरणागतम् ॥५॥
चलदनर्गलभवदवानलविकलकल्मषभाजनं कपटकौशलकलितपाकलफलितकर्मविपाककम् ॥ लसितलालसललितलाघवदलितबोधबलोदयं सदयमुद्धर जिन! यशोऽभिधमशरणं शरणागतम् ॥६॥
गुणविवर्जितविबुधर्जितशमविसर्जितमानसं भयहुताशनशमितशासनमसदुपासनलालसम् ॥ कुगतिसङ्गतिलसदसन्मतिसततसद्गतिवर्जितं सदयमुद्धर जिन! यशोऽभिधमशरणं शरणागतम् ॥७॥
अरिपटच्चरहठविलुण्ठितचटुलचेतनविह्वलं मतिविवर्जितचिरतरार्जितनियतितर्जितसक्रियम् ॥ कृतकराञ्जलिमघदवावलिविकलितालसचेतसं सदयमुद्धर जिन! यशोऽभिधमशरणं शरणागतम् ॥८॥
इति श्रीशकलितसकलकलहकोलाहलकपटकुलकलशैलकूटप्रविघटनप्रकटकौशलकुलिशायमाननिःशेषशेमुषीसमुन्मेषपराजितापरापराजितनिर्जराचार्यवर्याचार्यवर्यश्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरपादपद्मेन्दिन्दि
रायमाणविनेययशोविजयविरचितं
शरणगतोद्धरणाख्यं स्तोत्रं समाप्तम् ॥

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