Book Title: Nandanvan Kalpataru 2010 10 SrNo 25
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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अनुभूतिशतकम्
डॉ. अभिराजराजेन्द्रमिश्रः
माधुर्यं कोमलत्वञ्च धत्ते पक्वं फलं यथा । नरस्तथैव वार्धक्ये जायते कोमलो मृदुः ॥१॥ मातुर्धातुः पितुर्मित्रात् लोकादपि सुगोपितम्। जानात्यात्मा स्वकं पापं सोऽथवा जगदीश्वरः ॥२॥ पापमाश्रित्य संवृद्धो न जातः कोऽपि पर्वतः । वरं वल्मीकभावोऽसौ ततः पुण्यसमाश्रयैः ॥३॥ येऽभिराजस्य हन्तारो ये वाऽकारणवैरिणः । हन्त तेऽपि हता द्विष्टा लक्ष्यन्ते स्वयमात्मना ॥४॥
१. रचनाकालः ८.८.०९ (१-२६)
१६.८.०९ (२६-५०) ३०.८.०९ (५१-७०) १.९.०९ (७१-१०१)
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