Book Title: Nandanvan Kalpataru 2010 10 SrNo 25
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 23
________________ वासरे भूगौ प्रदोषकालपूजनप्रिये ! रक्तपद्मयुग्महस्तमध्यभागशोभिते ! पूर्णचन्द्रतेजसा विराजिताननान्विते ! पाहि पाहि पङ्कजाक्षवल्लभे ! नमाम्यहम् ॥४॥ यस्त्वदीयपूर्णदृष्टिपूतमानवस्सदा । स्वर्णरत्नकङ्कणादिभूषणान्वितो गृहे ॥ सम्पदन्विताग्रगण्यमध्यशोभितो भवेत् । पाहि पाहि पङ्कजाक्षवल्लभे ! नमाम्यहम् ॥५॥ यस्य मन्दिरं रमानिवासशोभितं सदा । पुण्यपूर्णमानवं वदन्ति तं नरं जनाः ॥ सर्वयोग्यताप्रदानमिन्दिरावशे स्थितम् । पाहि पाहि पडूजाक्षवल्लभे ! नमाम्यहम् ॥६॥ कैटभारिवक्ष्यमध्यभागशोभिते ! सदा । चन्द्रिकासमानमन्दहासशोभितानने ! ॥ रक्तपङ्जालये ! समस्तसौख्यदायिनि ! । पाहि पाहि पङ्कजाक्षवल्लभे ! नमाम्यहम् ॥७॥ इन्दिराकृपाकटाक्षपूतमानवोऽस्म्यहं । इन्दिरापदाब्जभक्तिरस्तु सर्वदा मम ॥ इन्दिरा ममाऽऽलये सदा निवासिनी भवेत् । पाहि पाहि पङ्कजाक्षवल्लभे ! नमाम्यहम् ॥८॥ भक्त्येन्दिराष्टकमिदं । प्रदोषे भृगुवासरे ॥ ये पठन्ति नरास्तेषां । सर्वसम्पत्प्रदेन्दिरा ॥८॥ (पञ्चचामरवृत्तलक्षणं तु - गुरुर्लगुनिरन्तरं भवेच्च पञ्चचामरम् ।) तेजस् - नं १२४/सि, ५ क्रास् गिरिनगरम्, बेङ्गलूरु:, पिन-५६००८५

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