Book Title: Nandanvan Kalpataru 2010 10 SrNo 25
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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________________ थिआ? अहुणा न उग्घाडिस्सं / जत्थ उग्घाडिअद्दारं अत्थि, तत्थ गच्छेह" एवं कहिऊण मोणेण थिओ / तया ते दुण्णि समीवत्थियाए तुरंगसालाए गया। तत्थ अत्थरणाभावे अईवसीयबाहिया तुरंगमपिट्ठच्छाइअवत्थं गहिऊण भूमीए सुत्ता / तया विजयरामेण चिंतिअं - ‘एत्थ सावमाणं ठाउं न उइअं' / तओ सो मित्तं कहेइ - "हे मित्त ! कत्थ अम्हं सुहसज्जा? कत्थ य इमं भूलोट्टणं? अओ इओ गमणं चिअ वरं" / स मित्तो बोल्लेइ - “एआरिसदुहे वि परन्नं कत्थ? अहं तु एत्थ ठास्सं / तुमं गंतुमिच्छसि जइ, तया गच्छसु" / तओ सो पच्चूसे पुरोहियसमीवे गच्चा सिक्खं अणुण्णं च मग्गीअ / तया पुरोहिओ सुट्ठ त्ति कहेइ / एवं सो तइओ जमाया 'भूसज्जाए विजयरामो' वि निग्गओ। अहुणा केवलं केसवो जामायरो तत्थ थिओ संतो गंतुं नेच्छइ / पुरोहिओ वि केसवजामाउणो निक्कासणत्थं जुतिं विआरिऊण नियपुत्तस्स कण्णे किंचि वि कहिऊण गओ / जया केसवजामायरो भोयणत्थं उवविट्ठो, पुरोहिअस्स य पुत्तो समीवे वट्टइ तया सो समागओ समाणो पुत्तं पुच्छइ - "वच्छ ! एत्थ मए रूवगो मुक्को सो य केण गहिओ? / सो कहेइ - "अहं न जाणामि" / पुरोहिओ बोल्लेइ - "तुमए च्चिय गहिओ, हे असच्चवाइ ! पावा ! धिट्ठ ! देहि मम तं, अन्नह तं मारइस्सं" ति कहिऊण सो उवाणहं गहिऊण मारिउं धाविओ / पुत्तो वि मुढेि बंधिऊण पिउस्स सम्मुहं गओ / दोण्णि ते जुज्झमाणे दट्ठण केसवो ताणं मज्झे गंतूण "मा जुज्झह मा जुज्झह" त्ति कहिऊण ठिओ। तया सो पुरोहिओ - "हे जामायर ! अवसरसु अवसरसु" त्ति कहिऊण तं उवाणहाए पहरेइ / पत्तो वि - "केसव ! दरीभव" त्ति कहिऊण मुट्ठीए तं केसवं पहरेइ / एवं पिअर-पुत्ता केसवं ताडिति / तओ सो तेहि धक्कामुक्केण ताडिज्जमाणो सिग्धं भग्गो / एवं 'धक्कामुक्केण केसवो' सो चउत्थो जामायरो अकहिऊण गओ / तद्दिणे पुरोहिओ निवसहाए बिलंबेण गओ / नरिंदो तं पुच्छइ - "किं विलंबेण तुमं आगओ सि?" / सो कहेइ - "विवाहमहूसवे जामायरा समागया / ते उ भोयणरसलुद्धा चिरं ठिआऽवि गंतुं न इच्छति / तओ जुत्तीए सव्वे निक्कासिआ / ते एवं वज्जकुडा मणीरामो, तिलतेल्लेण माहवो / भूसज्जाए विजयरामो, धक्कामुक्केण केसवो // " त्ति तेण सव्वो वुत्तंतो नरिंदस्स अग्गे कहिओ / नरिंदो वि तस्स बुद्धीए अईव तुट्ठो / एवं जे भविआ कामभोगविसयवामूढा सयं चिय कामभोगाइं न चएज्जा, ते एवंविहदुहाणं भायणं हुंति / उवएसो जामायरचउक्कस्स, सुणिऊण पराभवं / ससुरस्स गिहावासे, सम्माणं जाव संवसे // 3 // ससुरगेहम्मि भोयणासत्तचउजामायराणं कहा समत्ता // - सक्कयकहाए 118

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