Book Title: Nandanvan Kalpataru 2010 10 SrNo 25
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
अस्तेयमत्र पुनरन्तमनेकतायाः, एकत्वमेव जनजीवनसौख्यहेतोः, यश्चाऽब्रवीदिह सदाचरणं त्वकोपम्,
सम्मानितं तमृषभं प्रणमामि देवम् ॥७॥
(७) सत्यं त्वसङ्ग्रहमहिंसकतां च लोके, कल्याणहेतव इतीदमुपादिशद् यः । यस्याऽतिकष्टतपसो व्रतपारणा हि,
तं ब्रह्मनिष्ठमूषभं शिरसा नमामि ॥८॥
(८)
सम्पूर्णयौवनसुखानि विहाय योगी, चक्रे तपो वनगतोऽत्र विरागवान् सः । पीडा परस्य कथिता भुवि येन हिंसा,
स्वान्ते स्मरामि ऋषभं तमहिंसकं हि ॥॥
योगेन सत्यवचसा यमहिंसया च, ध्यानेन जीवदयया च तितिक्षया च, स्वात्मानमेव कूतवानिह यो हि तीर्थम्, तीर्थङ्करं प्रथममो ! ऋषभं भजामि ॥१०॥
(१०) आध्यात्मिकाय जनवर्णविभेदहाय, कल्याणदाय जनचिन्तनकर्मकाय, ध्यानाय योगनियमादिकपालकाय,
तस्मै नमो भगवते ऋषभाय बन्धो ! ॥११॥
२९५/१४, पट्टीरामपुरम्, खेकड़ा (बागपत) उ.प्र. २५०१०१

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128