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मुहता नैणसीरी ख्यात वैर छूटणा मुसकल छ । ताहरा फेर दीवांणरा परधांना अरज कीवी नै रावजीरा उमरावां-परधानाने कह्यो-' , धरती दीवी । अर सरतरी वेढ करो।" या वात दीवांणरा परधाना कबूल कीवी' । पाछा दीवांण पासै आया। दीवांण निपट राजी हुआ।' या करता फोजा अाय निजीक लागी।' वीच खेत वुहारांणों। खंभो रोपियो ।' रावजीरी फोज लडाईनू खरी आगमनी, दीवांणरी फ़ोज पाछमनी।" पण श्री रावजीरा परधानारै मनमे आई-'जु धरती लीज तो भली छै' । तद परधाना रावजी सौ भात-भांत अरज कीवी1-जु बोल-वधांणा कर धरती मडोवर वांस घातीजे तो भला छै । लडाईमे तो थीरावजी आगै अ टिग सकै नहीं।13 'धरती लेणरी वात रावजीर पण मनमे आई। परधाना अरज कीवी-'जु, रावजी हुकम करै तो लड़ाई परी थापा । एक सावंत रावजीरो ही ऊंतरै; पर एक सावत वांरो ऊतरै । जिकांरो सावत जीपै जिकरी हीज जीत।16 अर परधान फेर अरज कीवी,-'जु रावजी | थाहरो नक्षत्र इसड़ी दीसै छै; श्रीरावजीरो सामत जीपसी।' अरज रावजी मीनी ।18 अर दीवांणरा पर
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. I यह बात तो ठीक है। वैर करना तो आसान है परतु वैरं मिटना कठिन है । 2 तव । 3 फिर। 4 (वैरके वदलेमे) धरती दी और (अथवा) शतकी लडाई करना स्वीकार। 5 फिर दीवान (राणा)के पास आये। 6 दीवान बहुँत प्रसन्न हुए। 7 इतनेमें सेनाए परस्पर निकट आ लगी। .. 8 रणक्षेत्र साफ किया गया। 9 सीमा-स्तम्भ गोडा गया। 10 रावजीकी सेना 'ठीक पूर्वकी और और राणाजीकी सेना पश्चिमकी और । आगमनी-पाछमनी=(१) आगे-पीछे । (२) पूर्वाभिमुख और अपराभिमुख । (३) पूर्व-पश्चिमं । (४) पूर्वमे और पश्चिममे। II तब प्रधान लोगोंने अनेक प्रकार रावजीसे अंज की। 12 वचन-बंद करवा कर धरती (मेवाड़ राज्यका भू-भाग) ले ली जाय और उसे मडोर (मारवाड राज्य) में मिला दी जाय तो अच्छा है। 13 लडाईमें तो श्री रावजीके सम्मुख ये (मेवाड़के महाराणा). टिक नहीं सकते। . 14 धरती लेनेकी वात रोवजीको भी जेंच गई। 15 प्रधान लोगोने अरन की कि यदि श्री रावजी अाजा करे तो लडाई करनेको वातका भी परस्पर निश्चय करलें 16 एक योद्धा रावजीका
और एक उनको (मेवाडके राणाजीका) मैदानमें उतर जायें और (आप दोनोमे से) जिनकी सामंत जोत जाय उसोकी जीत समझी जाय। 17 और प्रधानोने फिर अर्ज कीकि रावजी ! आपका नक्षत्र ऐसा दिखता है कि श्री रावजीका सामत जीतेगा। 18 रावजीने उसकी अर्ज मान ली।