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मुहता नैणसीरी ख्यात
हुसी' ।' तहरां श्री रावजी उतरिया । भगत हुई | रोगिया । पण मन माहिलो गुस्सोमिटियो नही ।
त्यां रावत लूणो रावजीसू सीख कर जाय पोढियो । पाछा सोनगरी जाय महल कुलफ कर लीन्हो । रावजीनै खबर दराई । ' श्री रावजी सर्व घोडा, विसाइत, माल - मता लूटी' । यां करतां और पण सर्व लोग भोमिया डरिया' । आय सलामी हुवा | अठाहू असवार हुआ सो विचमे जिके भोमिया हुता सरब सलांमी करी' । साथ लिया ।
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पछै रूण साखलांरै पधारिया । सांखला नाळेर ले रावजीर साम्हां आया" | साखलो टीकायत रावत कहावतो तिगरी वेटी श्राया' रावजीनू परणाई" । अर रावजी पण खरा मैहरवान हुय व्याह कियो । या खवर राणोजीनू जाय पोहती 14 |
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तद नापै सांखलने रांणोजी हजूर बुलायो । बुलायने पूछियो " 'थांहरै कार्ड रावजी दिसिलि खबर श्राई" ?' आगे पूछता तद कहतो घणों सो- 'ग्रावण वाळो समान काई न छै"।' अर ईयँ वेळा पूछियो
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तद कह्यो''-'जु दीवांण ! वात साची छै । श्रा खबर म्हारे पण
उनने श्री रावजीको प्रदर बुलवाया, निछरावले की और कहा - ' बावा ! जो कुछ भी वन-माल और धरती आदि प्राप देखते हो, वह सब आपका है। भोजन करिये । सव ठीक होगा । 2 तव रावजी ठहर गये । भोजनकी तैयारी हुई, भोजन किया, परंतु मनका कोव मिटा नहीं । 3 फिर रावत लूगा तो रावजीसे प्राज्ञा प्राप्त कर जा सोया । 4 बाद उनकी पत्नी मोनगरीने जा कर महलके ताला लगा दिया । 5 रावजीको इसकी खबर करवा दी । 6 तव रावजीने नव घोडे और माल मता एव सामग्री लूट ली । 7 इम प्रकार करनेसे दूसरे नभी लोग और भोमिये भी डर गये । 8 श्राधीनता स्वीकार कर और सलानी वन हाजिर हुए । 9 यहाने चढकर चले तो वीचमे जो भोमिये थे उन सनीने सलामी बनना (आधीनता) स्वीकार किया । 10 ( उन सबको अपने ) साथ लेते 11 फिर ने नाखनो के यहा आये ( गये) । 12 ( रावजीको अपने यहा तुन) साले नारियल लेकर रावजीके स्वागतार्य सामने आये ।
गये
3 टीका माराला जो सब बहलाना था, जिसकी बेटी रावजीको व्याही गई । 14 और रावजीने मदान होणार विवाह किया। यह उवर राणाजीको जा पहुची
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15 बुलवाकर
पृच्छा ।
16 तुम्हारे पास की ओर कोई खवर बाई है क्या ? 17 पहले कभी जाता तो यही कहना - 'जो समाचार काने वाले थे (आये है ) वे सामान्य है, नहीं है। 18 और इस बार पूछा गया तो उसने कहा ।