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१. सृष्टि रचना (अ) परब्रह्म का स्वरूप ___ सृष्टि के आदि में केवल एक तत्त्व विद्यमान था जो अनन्त, अगम्य, अनादि, नित्य, असीम एवं सर्वव्याप्त था। यह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म तथा परमाणु का भी परमाणु था। यह इकाई स्वरूप भी नहीं था। उसे सत्, चित् व आनन्द स्वरूप भी नहीं कहा जा सकता। यही सृष्टि का मूल तत्त्व है जिसका कोई कारण नहीं है बल्कि समस्त जड़-चेतनात्मक जगत् का यही परम कारण है। वहाँ ज्ञान और क्रिया की भी अभिव्यक्ति नहीं थी। यह एक निरपेक्ष सत्य था। इसका कोई नाम रूप भी नहीं था। इसे न व्यक्त कहा जा सकता है न अव्यक्त, न मत न अमूर्त, न दृश्य न अदृश्य, न शान्त न स्पन्दनयुक्त, न क्षर न अक्षर, न जड़ न चेतन, न आत्मा न परमात्मा, न शून्य न पूर्ण। उसे कुछ भी नहीं कहा जा सकता फिर भी वही सब कुछ है। वह समस्त अभिव्यक्तियों से पूर्व में है।
वह सम्पूर्ण व्यक्त सृष्टि के पूर्व की अवस्था है । वही सत्ता है जिससे अन्य सभी सत्ताएँ प्रकट होती हैं । प्रकट होने के बादः ही उन्हें नाम दिया जा सकता है। जो पैदा ही नहीं हुआ उसे नाम कैसे दिया जा सकता है। अभिव्यक्ति से पूर्व का रूप
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