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( ५ ) छाया और भापानुवाद किया है। इसके लिये हम उनके आभारी हैं। ___ पूज्य श्री मणिधारीजी का चित्र या मूर्ति आदि न मिल सकने के कारण उनके समाधि-स्थान के चित्र को ही देकर संतोप करना पड़ता है। इसकी प्राप्ति हमें पूज्य श्रीजिनहरिसागरसूरीजी की कृपा से श्री केशरीचंदजी वोहरा दिल्लीनिवासी द्वारा हुई है जिसके लिये हम दोनों ही महानुभावों के आभारी है।
इस चरित्र का मुख्य आधार जिनपालोपाध्याय रचित 'गुर्वावली' है। अतः उपाध्यायजी का उपकार तो हम शब्दों द्वारा व्यक्त ही नहीं कर सकते। यह सूचित करते हमें हर्ष होता है कि इस ग्रन्थरन का संपादन पुरातत्त्वाचार्य श्रीजिनविजयजी जैसे सुप्रसिद्ध विद्वान् ने किया है और अब वह 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' से, प्रकाशित होने जारहा है।
हमने जिस समाधिरथान के चित्र का उल्लेख ऊपर किया है उसके सम्बन्ध में हम यहां यह सूचित कर देना उचित समझते हैं कि इस स्थान पर श्री मणिधारीजी के देहावसान के बाद स्तूप निर्माण हुआ था और वह स्तूप श्रीजिनकुशलसूरिजी के गुरु कलिकालकेवली श्रीजिनचन्द्रसूरिजी के समय में विद्यमान था। इसका प्रमाण हमें गुर्वावली से ही प्राप्त होता है। उसमें लिखा है । कि श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने संवत् १३७५ में उसकी दो बार यात्रा की थी। इस समय वहां पर चरणपादुका या मूत्ति नहीं है।