Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 83
________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि Marrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr सपरं वाधा सहियं विछिन्नं वंधकारणं विसमं। इय पंचमलविमुक्कं तं सुद्धं जिणवरो भणइ ॥ १६ ॥ अइसयमायसमुत्थं णिपन्नं णिचतं हवइ सिद्धं । इंदेहिं अणंतगुणं अणोवमं तं महादिव्वं ॥२०॥ संपुण्णविमलणाणं दसणसुहसत्तिवीरियनिवासं । सिद्धं बुद्धं णिच्चं तं वदे लोयसिहरत्यं ॥ २१ ॥ तित्थयरचक्वट्टी गभं धारंति पुरिसरयण च। ते सलहिन्नइ इत्थी अह सीलबईच न य अन्नं ॥ २२ ॥ सासंगि दोसढीवहिं णियगुणरयणेहिं लुचियो होइ । पंचमहन्वयनासो भुजतो दुग्गई जाइ ॥ २३ ॥ तम्हाहुजिणिन ट्ठिी अप्पमुहं दुक्खकारिणी बहुगा । दिट्ठोहिं रागभावो सो सिवसुक्खं च विग्घकरो।। २४ ।। अरिणिजियजिणराये रागाइ य जेहि रक्खिया चित्ते। तिहिं कह हवइ पसन्नो जिहिं कढिय तेहिं सतुह्रो ।। २५ ॥ त: दीय सिद्धिलच्छी अमियकरा पुन्नचंदसारिच्छा। भरहादिवसगराई जिहिं कारणि चइय बहुइत्थी ।। २६ ॥ तिहि गहिय सुद्धचरणं सुद्धप्पाधम्मझायमाणाणं । लद्धं केवलणाणं भरहाइयसिवसुह पत्ता ॥ २७ ॥ यदुक दशाश्रुतस्कन्धे। आयगुत्तेसु सुद्धप्पा धम्मे ठिचा अणुत्तरे । इहव लभते कित्ति पच्चाय मुगति वर ।। २७॥

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