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मात्तियाण जाति म्थापितः पूर्वास्यां दशवर्षाणि स्थित्वा महुत्ति-आण श्राद्धः प्रतियोधकः।
(परतर गच्छ पट्टायली संग्रहः पृ० ११) ४ श्रीजिनचन्दमूरि। (सम्बंगरंगशाला प्रकरणकर्ता) चिदन्य जातीय राज्याधिकारिणोऽपि श्राद्धाः जाता तेभ्यः प्रति पातिशाहिना वह महत्त्वं दत्तम् ततस्तेषा 'महतीयाण' इति गोत्र स्थापना कृता। तदगोत्रीयाः श्रावकाः "जिनं नमामि, वा जिनचन्द्र गुरु नमामि, नान्यम्" इति प्रतिक्षावन्तो बभूवुः" ।
(क्षमाफल्याणजी कृत पट्टावली, २०५० संग्रह प्र०२३)
५ 'श्रीजिनचन्द्रमरि (संवेगरंगशाला कर्ता):-धनपाल फटाफजाता मानिआण गोत्रीया इति । "महुत्तिआणडा दुः नम: का जिण का जिणचंद"
(परतर गन्ध पट्टावली मंडा, पृ.४५) ६ "श्री तत्वरतर-गच्छीय नरमणिनषित भालस्थल श्रीजिनचन्दमूरि प्रतियोधित मानि-आण श्रीमंध फारितः
(पावापुरी तीर्थध सं० १९१८फा लेग श्री परणरन्जी नाहर न जन लेगमप्रा।) ___ उपरोक अवतरणों में मं० १.२३. में मणिपागंजी और ०१-५ में मंगरंगशाला फलां जिनचन्द्रमूरिजी को इन जाति प्रतियोभम आचार्य लिया। किन्तु उसमें भी परिचय प्रायः
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