Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 97
________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रमरि rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr armrrrके पुत्र मं० सलमवणसिंह आदि ने फाल्गुन मृगाह से लगातार २५दिनों तक पूज्यश्री के पास प्रतिष्टा, प्रतग्रहण. उद्यापनादि नन्दिमहोत्सव बड़े समारोह से सम्पन्न करवाये। सं० १३८३ फाल्गुन ऋग्गा : को राजगृह के "भारगिरि" नामक पर्वत के शिखर पर ठ० प्रतापसिंह के वंशधर अचलसिंह ने चतुर्विंशति जिनालय निर्माण कराया था. उसके मूलनायक योग्य श्रीमहावीर स्वामी एवं अन्य तीर्घरों की पायाण एवं धातुनिर्मित बिम्बों की प्रतिष्टा श्रीजिनकुशालरिजी के करकमलों से सम्पन्न हुई थी। उपसंहार इन प्रकार उपलब्ध साधनों के द्वारा जो कुछ भी इस जाति के विषय में बात हुआ वह इस लेख में संक्षिम ल्प से लिख दिया गया है। इससे विशेष जानकारी रखनेवाले सज्जनों से अनुरोष है कि वे इस सम्बत्य में विशेष प्रकाश डालने की कृपा करें। [ओसवाल नवयुवक वर्ष ७ अंक से उद्धत] १ स. १४२ में उत्तीर्ण गनगृह पार्श्व जिनालय प्रगस्ति में श्री जिनकुगलपूरिनी के द्वारा विपुलागिरि पर मंत्र की मूर्ति की प्रतिष्टा की जाने का उल्लेख है। उक्त प्रशस्ति बड़े महल की है और अनुवाद श्री जिनविजयजी सवादित 'प्राचीन जन लेख संग्रह में भी प्रगित है।

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