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महतियाण जाति मग्नर गन्छ गृहद गुर्वावली में उनके मुत्यों का मनोरा एवं ग्लापनीय वर्णन भी मिलना है, जिसका संक्षिप्त मारया लिया जाता है।
गंबर १३७५ मे कलिकालवली श्रीजिनचन्नमरि माय दिल्ली के ठपार विजयसिंह, सदा (डालामऊ के अनलमिहने फलयदि पार्श्वनाथ की यात्रा की थी और वहां सेब ने बारह मान द्रव्य देकर इन्द्रपट प्राम किया था, एवं उसी वर्ष में ठपपुर प्रतापसिंह पुत्रगज अचलमिाः ने गनुबुटीन मरत्राण सेनयंत्र निर्वाध यात्रा के निमित्त फरमान प्राप्त कर मंघ नरित हस्तिनापुर. मथुग आदि अनेक तीथों की यात्रा की थी। वं मार्ग में पतुबुद्दीन मुग्नाण की पंद में उगकपुगेय आचार्य को बुदाया था।
मंस १३७६ में ठपपुर. आगपाल पं. पुत्र जगामिाने श्रीजिनारालसूरिजी आदि संग के साथ आगमण नारना आदि नीर्स की यात्रा की थी। २० १३८८ ममपनि ग्याति पसंप में गन्त्रिदलीय सेठ राधनपाल भी गुस्य सुमायनों में । मं० १९८१ में श्रीजिनगुगलसरिजी म. नाथ पाका नगर मे पधारे उम ममय टपात गणमायामनग आदिकायों नाग जन धर्म की प्रभावना की थी।
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