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मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि शिलालेखों के कथनानुसार इस जाति की उत्पत्ति अत्यन्त प्राचीन है। प्रथम तीर्थकर श्री ऋपभदेव भगवान के पुत्र महाराजा श्री भरत चक्रवति के प्रधानमन्त्री श्रीदल के नाम से उनकी सन्तति का नाम भी 'मन्त्रिदलीय' प्रसिद्ध हुआ। मन्त्री शब्द का अपभ्रंश "महता” हैं, अतः उनके वशजों की जाति का नाम भी उसी शब्दानुसार महत्तियाण' कहलाने लगा ऐसा ज्ञात होता है।
प्रतियोधक आचार्य इस जाति को प्रतिवोध देकर जैन वनाने का श्रेय खरतरगन्छाचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरि २ को है। शिखा-लेखों और पट्टावलियों में इस सम्बन्ध मे जो उल्लेख प्राप्त है, उनके आवश्यक उद्धरण इस प्रकार हैं:
१ "नरमणिमण्डित मस्तकाना प्रतिवोधित प्राग्देशीय महत्तियाणि श्रावक वर्गाणा"
(हमारे संग्रहस्थ १६ वी शताब्दि मे लिखित पट्टावली) २ "नरमणि मण्डित भालो महत्तियाण श्रावक प्रतिवोधकः”
मयसुन्दरजी कृत खरतरगच्छ पट्टावली ) ३ "नरमणिमण्डितभाल: श्रीजिनदत्तसूरिभिः स्वहस्तेन पट्टो
१ श्रीमपभाजनराज प्रथम चक्रवत्ति श्री भरत महाराज सकल मन्त्रिमढल श्रेष्ठ मत्रि श्रीदल सतानीय महत्तिआण ज्ञाति + (पावापुरी शिलालेख)
२ श्रीजिनचन्द्रसरि-ये श्रीजिनदत्तसूरिजी के शिष्य थे।