Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 81
________________ परिशिष्ट (२) ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ श्री कपूरमल्ल विरचितम् ब्रह्मचर्य परिकरणम् पउस रयणाइ रइया, भासुरकिरणेहिं नहयलं चित्तं । देविंदमउलिलच्छी, नमिय जिणं वसइ कमकमले ॥ १ ॥ णिनियमणंगवीर, सुद्धप्पा झायमाण त वीरं। निमिय सिरिधम्मसिहरं, वंभवयं सु नध वोच्छामि ।। युग्मं तं वंभवयं दुविहं, दव्वं भावं जिणेहिं णिद्दिट्ट। जो चरइ सम्मणाणी, णिवाणसुहं च पावेइ ।।३।। वंभ भणियइ आया, तस्स सरूवं च चरइ जो साहू । सो भाववंभचरणं इत्थीवायेण दवो य ॥४॥ नरतिरियदेवइत्थी उवलाइय धाओ दारुचित्तंगा। मणवयणकायचाये नवकोडिविसुद्ध सो साहू ॥५॥ चारितमोहउदये इत्थीस्वेण रजिओ मूढो । ते खुद्द अवयठाणा पुग्गलदव्वस्स परिणामा ॥६॥ परिहरह एस इत्थी कुच्छियमलधाओ असुइठाणं च। सूडपडणगलणधम्मा रागविसं कारिणी वल्ली ॥७॥

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