Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 47
________________ नगियारी श्रीजिनचन्द्रलर ___ सं. १२९४ में संत्रलगच के आचार्य श्रीनहन्टमूरि विरत्रित शतपनी प्रत्य के भामात्नर घट १५२ में "श्रीजिनचन्द्रसरि नी आचरणाओं से तीन बाने लिखी है. इस प्रकार है. १ एक पट्टना ना ५ लोकमाल. यन. यक्षिणी क्षेत्रवता, बैग्देवता. शासनवता. नामिलदेवता. भद्रकदेवता. आनन्तुल देवता तथा ज्ञान. दर्शन. अने चारित्रना देवता एवं २५ दन्तानी बुल बुटी भी करी।। २ जिनदतरि चैत्यना नानी के वृद्ध वेश्या ने नचाव टेगरी युवान कन्ग तथा गानारी स्त्रियों नु निषेध कों पण जिनचन्द्रभूरि ए वी बग निषेध करें। ३ जिन्दत्तरिए श्रावित्रा ने मूल प्रतिमा ने अड़क, निग्य है पण जिनचन्द्रगरिए तो एम ठहरान्यु के श्राविकाओ सर्वथा शुचि नहीं जोय माटे तनणे कोई पण प्रतिना ने नहीं अकबु । तरगच्चीय त्यों में इन आचरणाओ के सम्बन्ध में उल्लेत्र है या नहीं? यह बने अज्ञात है। ग्रन्य-रचना भारली विकृत प्रतिमा की परिचायक कोई ऋति आज सामने नहीं है। केवल एक व्यवस्थाशुल्क-(साधु, साध्वी. शक्र. श्राविका शिक्षालन ही उपलब्ध है. जिसे सानुवाद इम पुस्तिका में प्रगट लिया जा रहा है।

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