Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ व्यवस्था-शिक्षा-कुलकम् अवन्नवाइणो सीसा, माणिणो छिद्दपेसिणो। सबुद्धिकयमाहप्पा, गुरुणो रिउणो व्च ते नेया ॥ ५ ॥ अवर्णवादिनः शिष्या मानिनश्छिद्रप्रेक्षिण । स्वबुद्धिकृतमाहात्म्या गुरारिपव इव तयाः ॥५॥ अर्थ-जो शिष्य गुरुमहाराज के अवर्णवादी है अभिमानी और छिन्द्रान्वेषी हैं अपने को अधिक बुद्धिमान समझने वाले हैं उनको गिप्य नहीं गुरुमहाराज के शत्रु जैसे मानने चाहिये । नाणदसणसंजूत्तो खेत्तकालाणुसारओ । चारित्त चट्टमाणो जो सुद्धसद्धम्मदेसओ ।। ६ ।। ज्ञानदर्शनसंयुक्तः क्षेत्रकालानुसारगः । चारित्रे वर्तमानो यः शुद्धसद्धर्म देशकः ।।६।। अर्थ-जो सम्यग दर्शन और ज्ञान मे मयुक्त हैं क्षेत्र और काल के अनुगार ही चारित्र में वर्तमान है ये ही साधु पुरुष शुद्ध और सत्य धर्मक उपदेशक हो सकते हैं। १ पहिणी। २-सित्ता ३-चरिते। ४-टेमिओ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102