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लकम्
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व्यवस्था-शिक्षा-कुलकम् वायणा सरिणो जुत्ता, निसेज्जा पयकंवला । चउकी पुष्टिवट्टो य, पायाहो-पाय पुंछणं ॥ १५ ॥ वाचना सुग्युक्ता निपद्या पदकम्बला ।
चतुष्किका पृष्टिपट्टश्च-पाढाधः पादपोंछनम् ।। १५ ।। अर्थ-आचार्य महाराज मे वाचना का होना युक्त है। आमन परकम्बल चौको पीठफलक और पैरों के नीचे पादौछन भी आचार्य महाराज के लिये होते हैं।
अर्थ - वाचनाचार्य के लिये निपद्या-आसन पदकवल चौकी पीठफलक पदतल पादपोंछन होना युक्त है।
पाएन चंदणं जुत्त न कप्पुराइ खेवणं । साविया धवले दिति, एसोसुगुरु दिक्खिओ ॥ १६ ॥ पादयोश्चन्दनं युक्त न कर्पूरादिक्षेपणं । श्राविका धवलान् दृढत्येप 'सुगुमटः ॥१६॥
त्येप (विधिः) सुगुरुदर्शितः ।।
अयं-अगपूजा के समय आचार्यदेव के चरणों में चटन लगाना गुरू है. न कि कपूर आदि का ग्येना। आचार्य देव के सामने प्राधिकार धवल देती हैं मगल गीत गाती हैं। एसे मुगुरु देखे गये है। अथरा यह मुगुरु का फरमान है।