Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 57
________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रपरि wrwww. waman rrrrrrrrrrr..... ww.rrn xx..mararam अर्थ-वाचनाचार्य के चरणों में चन्दन पूजा ही युक्त है, न कि कर्पूर आदि का डालना। श्राविकाएँ धवल ढती है मगल गाती है। यह मुगुन का फरमान है। पहजिणवल्लभ सरिसा वाणायरिओ कि होइ जइ कोवि । कप्पूरामखिवणं तस्स मिरे कारई जुत्तं ॥ १७ ॥ प्रभुजिन वल्लभ सशो-वाचानाचार्योऽपि भवति यदि कोऽपि । कर्पूरवास क्षेपणं तस्य-शिरसि क्रियतं युक्ताम् ॥ १७ ॥ अर्थ-समर्थ एवं श्रीजिनबन्लमनी महागज के जसे वाचनाचार्य यटि अंडे हो तो उनके मस्तक पर क ग्वान का दालना युक्त ही है । कीरई वामनिक्खयो उज्झायस्सय संगओ । अक्खण्य सकप्पूर न दिगंति य तस्सिरे ॥१८॥ क्रियते वासनिक्षेप-उपाध्यायस्य च संगत.। अक्षतान सकभ्रान्-न दीयन्तं च तच्छिरसि ।। १८॥ अर्थ-उपाध्यायजी महाराज के उपर बास-शंप का करना सगत है । कर महित अननों को उनके मस्तक पर नहीं डालने चाहिये। जो सिंहटाणिओ सूरी, सो होइ पत्रयणपगुत्ति । पवयणपभावणा हेडं, तस्स पदसारओ कुजा ॥१६॥

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