Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 70
________________ च्यवस्था-शिक्षा-फुलकम् सीमन्तोन्नयनं तु जन्म च नामाकरणं मुण्डनम् । पुत्रादीनां विवाहश्च भवन्ति उत्सवा इमे ॥ ४६॥ अर्थ-सीमतकर्म-जन्म, नामकरण, मुण्डन, पुत्राटिकों के विवाह ये उत्सव के स्थान होते हैं। उस्सग्गेणासणाईणि कप्पणिज्जाणि जाणिउ । आहाकम्माइ दोसेण, जाणि चत्ताणि दूर ओ ||४|| उत्सर्गणासनादीनि कल्पनीयानि जात्वा । आधाकर्मादि दोपण नात्वा त्याज्यानि दूरतः ।। ४७ ।। अर्थ--उत्सर्ग से करपनीय असन पान आदि को जान कर गाधु ले, और आधाकर्म आदि दोषपूर्ण जान कर दूर से हो त्याग दे। दायवाणि जईणं तु जेण वृत्तं जिणागमे । पिंडं सेज्जं च वत्थं च प सिज्जभवेण उ ॥४८॥ दातव्यानि यतीना तु येन प्रोक्तं जिनागमे । पिण्डः शय्या च वस्त्रं च पात्रं च सय्यंभवेन तु ॥४८॥ अर्धयतियों को देने योग्य पिट, गया, वरन और पान श्री गण्य भवानार्य ने दशवकालिझ~-जिनागम में कहा है उससे जाने । एवं सुबहुहा मुत्ते वोत्तमत्थि जहट्ठियं । तहायवायओ वावि नाणामत्तंसु दंसियं ॥ ४६ ॥

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