Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 15
________________ आदि वर्जित थे। श्रावक लोग जने पहले यहा न आने थे, और न यहाँ नाम्चूल-चत्रण होता था। नृत्य, हाम, क्रीडा, तथा जिनोपदेश विन्द्व अन्य कार्य यहां सर्वथा निपिद्ध थे। चिनोड, नग्वर, नागौर, मरोट आदि विविर्चत्यों में ये शिक्षाएं प्रशस्ति रूप में लगा दी गई थीं। श्रीजिनदत्तनूरि इनके मुयोग शिष्य थे। इनका चरित्र इम ग्रंथमाला में शीव ही प्रकाशिन होगा। अतः यहां इतना ही कहना पयांप होगा कि ये अत्यन्त प्रभावशाली एव निभीक उपदेवा थे। यदि सब धर्माचार्य इनके समान "मड वा पगे मा विम या पग्यित्तट । भामिव्वा हिया भामा मपम्प गुणकारिया ॥" कह सके तो क्या ससार में कभी धर्म की अवनति हो सकती है ? ___इस लघुकाय पुस्तिका मे अगरचन्दजी एवं भंवरलालजी नाहटा ने इनके सुशिप्य एवं पट्टधर श्रीजिनचन्द्रमूरि का चरित्र दिया है। पुम्नक बड़ी खोज के साथ लिखी गई है। विद्वान् लेंग्यका की इस बात से में मर्वथा सहमत हूँ कि सूरिजी द्वारा प्रतियोधित मदनपाल कोई सामान्य श्रावक मात्र नहीं बल्कि दिल्ली का राजा था। चौहानों के अधीन होने पर भी किसी अन्यवंशीय राजा का दिल्ली में राज्य करतं रहना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। विग्रहराज चतुर्थ ने आशिका अर्थात हांसी को दिल्ली से पहिले जीता था, किन्तु संवत् १२२८ मे वहाँ भीमसिंह नामक चौहाने

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