Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 34
________________ nnn nnnnnnnnnnnn मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि १७ मेरे नगर में आपका कोई प्रतिपक्षी है ? या आपके परिवार योग्य अन्नजल की प्राप्ति में असुविधा है। अथवा और कोई कारण है ? जिससे मार्ग में आये हुए मेरे नगर को छोड़ कर आप अन्यत्र जा रहे हैं। ___ सूरिजी ने कहा-“राजन् ! आपका नगर प्रधान धर्मक्षेत्र है" परन्तु.... ... .. राजा- तो फिर उठिये और शीघ्र दिल्ली पधारिये। आप विश्वास रखिये कि मेरी नगरी में आप की ओर कोई अङ्गाली भी नहीं उठा सकेगा। दिल्लीश्वर मदनपाल के विशेप अनुरोधवश श्रीजिनदत्तसूरिजी की दिल्लीगमन निषेधात्मक आना का उलघन करते हुए उन्हें मानसिक पीडा अनुभव होती थी, फिर भी भवितव्यता के वश से दिल्ली की ओर प्रस्थान करना पड़ा। आचार्यश्री के प्रवेशोत्सव के उपलक्ष मे सारा नगर बन्दरवाल, तोरण और पताकाओं से सजाया गया। २४ प्रकार के वाजिन वजने लगे। भट्ट लोग विरुदावली गाने लगे। सधवा स्त्रियाँ मङ्गल गीत गाने लगीं। स्थान स्थान पर नृत्य होने लगा। लाखों मनुष्यों को अपार भीड़ के साथ महाराजा मदनपाल सूरिजी की सेवा में साथ चल रहे थे। प्रवेशोत्सव का यह श्य अभूतपूर्व था। लोगों का हृदय आनन्द से परिपूर्ण हो गया। सूरिजी के पधारने पर नगरवासियों मे नवजीवन का संचार होने लगा। उनके उपदेशामृत की झड़ी से अनेक लोगों

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