Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 33
________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रमूरि हुए देख कर राजप्रासाद में बैठे हुए महाराजा मदनपाल ने विम्मय पूर्वक अपने प्रधान अधिकारियों से पूछा-"ये नगर के विशिष्ट लोग बाहर क्यों जा रहे है ?” उन्होंने कहा-'राजन् ! अत्यन्त सुन्दर आकृतिवाले अनेक शक्ति सम्पन्न इनके गुरु महाराज आये है, ये लोग भक्तिवश उनके स्वागतार्थ जाते हैं। ___ कौतूहलवश महाराना के मन में भी सरिजी के दर्शनों की उत्कण्ठा जागृत हुई और राजकर्मचारियों को आज्ञा दी किहमारे पट्ट घोड़े को सजाओ और नगर में घोषणा कर दो कि सब राजकीयपुरुप तैयार होकर शीघ्र हमारे साथ चलें।। ___ राजाना पाकर हजारो सुभट लोग अश्वारूढ़ होकर नरपति के पोछे हो गये। महाराजा मदनपाल श्रावक लोगों से पूर्व ही ससैन्य सूरिजी के निकट जा पहुँचे। , साथ वाले लोगों ने राजा साहब को प्रचुर भेंट देकर सत्कृत किया। पूज्यश्री ने भी अमृतमय धर्म देशना दी। राजा साहब ने उपदेश श्रवण कर कहा-महाराज! आपका शुभागमन किस स्थान से हुआ है " पूज्यश्री ने कहा-इस समय हम रुद्रपल्ली से आ रहे हैं। राजा साहब ने कहा-आचार्य भगवन् । उठिये और अपने चरणविन्यास से मेरी नगरी को पवित्र कीजिये। पूज्यश्री, श्रीजिनदत्तसूरिजी के दिये हुए उपदेश को स्मरण कर कुल भी न बोले। तब उन्हें मौन देख कर पुनः राजा साहब ने कहा-"आचार्य महाराज! आप चुप क्यों हैं? क्या

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