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मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसरि साथवाले लोगों ने कहा-भगवन् । देखिये, वह म्लेच्छों की मेना आ रही है, इस दिशा में आकाश धूलि से आच्छादित हो रहा है। यह देखिो-सैनिकों का कोलाहल भी सुनाई देता है।
पूज्यश्री ने सावधान होकर सब से कहा--महानुभावो! धैर्य रखो अपने ऊंट, बैल आदि चतुष्पदी को एकत्र कर लो। प्रनु श्रीजिनदत्तसूरिजी सब का भला करेंगे।
तत्पश्चात पूज्यश्री ने मन्त्रध्यानपूर्वक अपने दण्डे से संघ के चारों और कोट के आकार वाली रेखा खींच दी। सथवाड़े के लोग गोणी मे घुस गये। उन लोगों ने घोड़ों पर चढे हुए हजारों म्लेच्छों को पडाव के पास से जाते हुए देखा परन्तु म्लच्छा ने सब को नहीं देखा, वे केवल कांट को देखते हुए दूर चल गये। सब लोग निर्भय होकर चले, और क्रमशः दिल्ली के समीप जा पहुंचे।
सूरिजी के पधारने की सूचना पाकर दिल्ली के ठक्कुर लोहट, सा० पाल्हण, मा० मुलचंद्र, सा० महीचद आदि सब के मुख्य श्रावक बड़े समारोह के साथ सूरिजी के वन्दनार्थ सन्मुख चल पड़े।