________________
मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि
Annnnnn
महाराजा मदनपालप्रतिवोध
दिल्ली नगर के प्रधान लोगों को सुन्दर वेशभूपा से अलंकृत, सपरिवार सवारियों पर आरूढ़ होकर नगर से बाहर जाते
१ पिछले पट्टावलिकारों ने मदनपाल को श्रीमाल श्रावक लिखा है परन्तु गविली से स्पष्ट है कि उस समय वे दिल्ली के महाराजा थे। यथापि भारतीय ऐतिहासिक ग्रन्थों में उनका उल्लेख नहीं पाया जाता पर तँवर राजवगावली शुद्ध एव परिपूर्ण उपलब्ध नहीं है तथा उस समय दिली के शासक कौन थे इगके जानने के लिए भी कोइ मुद्रादि साधन उपलब्ध नहीं है अतएव गुर्वावली तिमिराच्छन्न भारतीय इतिहास पर एक नवीन प्रकाश डालती है। गुर्वावलीकार के कथन में सन्देह का कोई भी कारण नही हो सकता क्योंकि इसके कर्ता उ० जिनपाल की दीक्षा स. १२२५ में हुई थी अतः हमारे चरित्रनायक के साथ में रहने वाले गीतार्थों के मुग से सुनी हुई सत्य घटना को हो सकलित किया गया है। उपाध्यायजी चरित्रनायक के पशिष्य थे एव उनका समय भी अति सन्निकट अर्थात् जिनचन्द्रसूरिजी के म्वर्गवास के दो वर्ष पश्चात् ही आपकी दीक्षा हुई थी। इसलिए पावलिकारों का कथन यहीं तक ग्राह्य हो सकता है कि मदनपाल के आग्रह से रिजी दिल्ली पधारे थे और वह आपका अत्यन्त भक्त था अतः उमे श्रावक शब्द से सम्बोधित कर दिया है।
क्षमाकल्याणजी की पट्टावली में उस समय दिल्ली का शासक पातसाह लिसा है पर यह सर्वथा भ्रान्तिमूलक ही है ।