Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 29
________________ APAM मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि में प्रधान सभ्यों के समक्ष होना ही उचित है। नीति और प्रमाणों द्वारा अपने अपने पक्ष का समर्थन करके वस्तु स्वरूप का तभी विचार हो सकता है। यह निश्चित है कि स्वपक्ष स्थापना करने पर भी वस्तु अपना स्वरूप नहीं छोड़ती। पद्म-पक्ष स्थापनामात्र से वस्तु अपना स्वरूप छ नहोड़े पर परमेश्वर तीर्थङ्करों ने 'तम को द्रव्य कहा है, यह सर्व लम्मत है। मूरिजी-अन्यकार को उन्य मानना कौन अस्वीकार करता है? पूज्यत्री ने वार्तालाप के समय ज्यों ज्यों शिष्टता और विनय प्रदर्शन किया त्यों त्यों पद्मचन्द्राचार्य अहवार में उन्मत्त हो गए। कोप के आवेग से उनक नेत्र लाल हो गए, शरीर कांपने लगा और कहने लग-"जब मैं प्रमाण रीति से अन्धकार द्रव्य हैं इसे स्थापित करूँगा तब तुम क्या मेरे सामने ठहर सकोगे।" सुरिजी-किस की योग्यता है और किसकी नहीं, यह तो मौका पड़ने पर राजसभा में स्वतः विदित हो नायगा। पशुप्राया की जंगल ही रणभूमि है, आप हमें लघुवयस्क सममा कर अपनी शक्ति को अधिक न वधारिये ! मालम है ? छोटे शरीर वाले सिंह की दहाड़ सुन कर पर्वताकृति गजराज भी डर नान है। ___ इन दोनों आचार्यों का विवाद मुन कर कौतुक देखने के लिए वहां कितने ही नागरिक एकत्र हो गए। दोनों पक्ष के

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