Book Title: Manidhari Jinchandrasuri
Author(s): 
Publisher: Shankarraj Shubhaidan Nahta

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Page 28
________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि को अपने पास से होकर वहिभूमि जाते देख मात्सर्यवश पद्मचन्द्राचार्य नामक चैत्यवासी ने उनसे पूछा कहिये ! आचार्यजी आप आनन्द में हैं " सूरि-हाँ। देवगुरु के प्रसाद से आनन्द में हूं। पद्म०-आप आज कल किन किन शास्त्रों का अभ्यास करते है ? यह सुन कर साथ मे रहे हुए मुनि ने कहापूज्यश्री आज कल न्याय कन्दली” १ का चिन्तन करते है।। पद्म-क्यों, आचार्यजी आपने तमोवाद का चिन्तन कर लिया है। सूरिजी-हाँ, तमोवाद प्रकरण देखा है। पद्म०-आपने उसका अच्छी तरह से मनन किया है। सूरिजी-हां, कर लिया है। पद्म०-अन्धकार रूपी है या अरूपी, एवं उसका रूप कैसा है? सूरिजी-अन्धकार का स्वरूप कैसा ही हो, पर उस पर वाद करने का यह समय नहीं है। वाद विवाद तो राजसभा १ यह ग्रन्थ श्रीधर का बनाया हुआ है। इस पर हर्षपुरोयगच्छ के मलधारी श्रीदेवप्रभसूरि ( १३ वीं शताब्दी) के शिष्य नरचद्रसरि ने टिप्पण लिसा है। एवं उन्हीं की परम्परा मे राजशेखरसूरि ( १५ वो शताब्दी) ने पशिका बनाई है।

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