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मणिबारी श्रीनिनचन्द्रसूरि
इन्हं दिल्ली जाने का सर्वथा निषेध किया था। सूरिजी के भावी संक्त का तात्पर्य यह था कि ये इस सम्बन्ध में सतर्क रहें।
गच्छनायक पद संवन १२११ मिती आपाढ शुक्ला ११ को अजमेर नगर में श्रीजिनदत्तनूरिजी महाराज स्वर्ग सिधा। तभी से गच्छ सञ्चालन का मारा भार इनके ऊपर आ गया। ये भी बडी योग्यता पूर्वक इस महान पढ को निभाने लगे।
विहार सवन् १२१४ मे श्रीजिनचन्द्रसूग्जिी त्रिभुवनगिरि । पधारे। वहा परमगुरु श्रीजिनदत्तमूरिजी द्वारा प्रतिष्टित श्री
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१ ग्यारहवीं शताब्दी के जनाचार्य श्रीप्रा नमूरिजी ने त्रिभुवनगिरि के कदम गजा को जन बनाया था। जो टोलिन होकर श्रीवनश्चमूरिनी के नाम में प्रसिद्ध हुए थे।
[जन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास पृ. १६२-७ ] म. १९६५ मे रचित 'गणवरमार्यशतक वृहद वृत्ति' और 'गुर्वावली' में श्रीजिनदत्तमूग्जिी के त्रिभुवनगिरि पवारने और वहा महाराजा कुमारपाल को प्रतिवाब देने का उलेय पाया जाता है।
हमारे सग्रह के श्रीवादिदेवमूरिचरित्र में त्रिभुवनगिरि के दुर्ग में रक्तवन वादा को पराजा करने का वर्णन मिलता है।