________________
मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसरि
nwrrrrrrrrrrrrrrrm
जन्म
जेसलमेर के निकटवर्ती विक्रमपुर ' में साह रासल नामक पुण्यवान श्रेष्टि निवास करते थे। उनके देल्हणदेवी नामक सुशीला धर्मपत्री थी। उसकी रत्नगर्भा कुक्षि से सं० ११६७ भादवा शुक्ला ८ के दिन ज्येष्टा नक्षत्र मे हमारे चरित्रनायक श्रीजिनचन्द्रसूरिजी का जन्म हुआ था। ये आकृति के बड़े ही सुन्दर, सुडौल और लावण्यवान थे।
१ यह स्थान (पोहकरण ) फलोवी मे ४० मील पर अब भी इमो नाम से प्रसिद्ध है। यद्यपि इस समय यहा जनी की वस्ती एव जन मन्दिर विद्यमान नहीं है, फिर भी कई चगावशेप इतस्ततः पाये जाते हैं। यहा के मन्दिर की मूर्तिया जेसलमेर के मन्दिर में विराजमान की गई हैं।
कई लोग बीकानेर, जिसका नाम भी विक्रमपुर पाया जाता है, नाम साम्य की भ्रान्ति से आक्षेप करते हैं कि उस समय बीकानेर बमा भी नहीं था, लेकिन वास्तव में यह बात अनानमूलक है। स० १२९५ में सुमतिगणि कृत गणधरसार्वशतक वृहति से स्पष्ट है कि श्रीजिनदत्तमूरिजी ने यहा के वीरजिनेश्वर की प्रतिष्ठा की थी। भूत-प्रेती को तिरस्कृत किया था। खरतरगच्छ पट्टावलीसग्रह में प्रकाशित स० १५८२ की सूरिपरम्परा प्रशस्ति में लिखा है कि महामारि के उपञ्च को गान्त कर माहेश्वगनुयायि लोगों को जनवर्म का प्रतियोव टेकर जैनी बनाया था।