Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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शिक्षा सेवा को एक मौलिक भाव-भूमि, एक रचनात्मक धरातल प्रदान करने हेतु आज से सैतीस वर्ष पूर्व राणावास में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ की स्थापना की गई और उसके संचालन, उद्देश्य पूर्ति का उत्तरदायित्व ग्रहण किया श्रद्ध य सुराणा साहबने। ३७ वर्ष पूर्व संघ के तत्वावधान में प्राथमिक स्तर की शिक्ष, का जो बीजवपन हुआ, आज वह उनके सैंतीस वर्षों के अथक परिश्रम, दृढ़ संकल्प, कर्मठता, त्याग एवं साधना से सिंचित होकर उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक एवं महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा के रूप में प्रस्फुटित होकर वट-वृक्ष की भांति लहलहा रहा है। श्रीयुत सुराणा साहब के निर्देशन में शिक्षा के सही स्वरूप के प्रचार-प्रसार में मंघ का अनूठा योगदान रहा है।
वस्तुतः माननीय सुराणा साहब ने समाज सेवा के जिम पुनीत यज्ञ का शुभारम्भ किया, उसमें आप स्वयं आहुति बन गए। विगत सैंतीस वर्ष से श्रीयुत सुराणा साहब निःस्पृह भाव से शिक्षा प्रचार-प्रसार, विद्यार्थियों के सद्चरित्र निर्माण द्वारा राष्ट्र एवं समाज की अनुपम सेवा में रत है।
ऐसे प्रतिभा सम्पन्न, प्रेरक महापुरुष की कर्मठता, साधना एवं अनुपम समाज-सेवा को दृष्टि में रखते हुए संघ द्वारा श्रद्धय सुराणा साहब का अभिनन्दन करने का उचित एवं सामयिक निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया। अभिनन्दन समारोह के सुअवसर पर श्रद्धय सुराणा साहब को एक थैली एवं अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करने की योजना निर्धारित की गई। सन् १९७८ में इस कार्य में गति आई । थैली हेतु धन संग्रह एवं अभिनन्दन ग्रन्थ के मुद्रण कार्य के सफल संचालन के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया। अभिनन्दन समारोह के संचालन समिति के मंत्री पद एवं अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन कार्य हेतु प्रबन्ध सम्पादक का उत्तरदायित्व मुझे दिया गया।
अभिनन्दन समारोह की समग्र रूपरेखा के निर्धारण हेतु संचालन समिति के सदस्यों की बैठक आमंत्रित की गई और विभिन्न पहलुओं पर प्रयास प्रारम्भ हुए। अर्थ संग्रह हेतु अभिनन्दन ग्रन्थ का मूल्य निर्धारित कर ग्रन्थ के ग्राहक सदस्य बनाने का विचार स्वीकार किया गया। ग्रन्थ के माननीय ग्राहक बनाने का अभियान चलाया गया । इस अभियान में श्री पुखराजजी कटारिया, श्री भंवरलाल जी सुराणा, श्री सिरेमलजी डोसी, श्री भूपेन्द्रजी मूथा, श्री मनोहरलालजी आच्छा आदि का प्रशंसनीय व सक्रिय सहयोग रहा। मैं इन सभी महानुभावों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्बन्ध में प्रारम्भ से ही यह दृष्टिकोण रहा कि यह ग्रन्थ मात्र श्रद्धय सुराणा साहब का जीवन वृत्त ही बनकर न रहे, वरन् समाज को अमर संदेश देने वाली एक उच्चकोटि की साहित्यिक उपलब्धि प्रमाणित हो। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए अभिनन्दन ग्रन्थ की प्रस्तावित रूपरेखा बनाई गई। ग्रन्थ को विभिन्न विषय-बिन्दुओं के आधार पर खण्डों में विभाजित किया गया और प्रकाशन सामग्री को एकत्र करने के लिए अथक प्रयास किये गए । विभिन्न विषय बिन्दुओं के मर्मज्ञ एवं प्रामाणिक लब्ध प्रतिष्ठ विद्वान लेखकों तथा धर्मसंघ के संत श्रा व साध्वी श्री समुदाय से सम्पर्क स्थापित किया गया। सामग्री को एकत्र करने में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । निरंतर पत्र-व्यवहार चलता रहा। व्यक्तिगत रूप से भी सम्पर्क किए गए । राष्ट्र के गणमान्य नागरिक महानुभावों से संदेश एवं शुभकामनाओं की प्राप्ति हेतु भी निरन्तर प्रयास करने पड़े। इन निरन्तर प्रयामों का सफल भी सामने आया, उच्चकोटि की प्रकाशन सामग्री प्राप्त करने में हम सफल रहे। प्रकाशन सामग्री के एकत्र होने के पश्चात रचनाओं की चयन प्रक्रिया एवं सम्पादन कार्य प्रारम्भ हुआ और इसके साथ ही ग्रन्थ के मुद्रण कार्य हेतु भी प्रयास प्रारम्भ हुए। विभिन्न मुद्रणालयों से सम्पर्क किया गया। अंतत: आगरा में कार्यरत अनुभवी प्रकाशक, स्वयं सफल साहित्यकार श्री श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क किया गया। सम्पूर्ण प्रकाशन योजना उनके सामने रखी गई और उन्होंने मुद्रण कार्य का भार ग्रहण किया।
आज ग्रन्थ का प्रकाश कीय लिखते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है। अथक प्रयासों का सुपरिणाम सम्मुख आ रहा है । अभिनन्दन समारोह के सम्पूर्ण कार्यकलापों और विशेषतः ग्रन्थ प्रकाशन के वृहद कार्य के प्राणवान प्रेरक
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