Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रकाशकीय
संत ज्ञानेश्वर का कथन है-आत्म-दर्शन का एक ही उपाय है-हृदय शुद्धि और निकटवर्ती जीव सृष्टि की सेवा । ___ शुद्ध हृदय से जन सेवा करने वाले पुरुष बिरले ही होते हैं। निस्वार्थ जनसेवा की महत्ता निर्विवाद है। सभी प्रकार के स्वार्थों से एवं भेदभावों से परे रह कर जन-जन के प्रति सेवा की भावना अपनाकर ही कल्याणकारी समाज की स्थापना की जा सकती है। आचार्य श्री तुलसी के शब्दों में
"सेवा शाश्वतिको धर्मः, सेवा भेदविवर्जनम् । ..
सेवा समर्पणं सेव्ये, सेवा ज्ञान-फलं महत् ॥" सेवा शाश्वत धर्म है। सेवा 'यह मेरा है, यह तेरा है,' इस भेद का विसर्जन करती है। सेवा सेव्य में विलीन होकर ही की जा सकती है। सेवा ज्ञान की उत्कृष्ट उपलब्धि है।
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानवहितकारी संघ के मानद् मंत्रीजी माननीय कर्मयोगी श्री केसरीमल जी सुराणा उन विरले महान पुरुषों में से हैं जिन्होंने समाज हित के लिए अपना तन-मन-धन, सर्वस्व एकनिष्ठ भाव से अर्पण कर दिया है। श्रीयुत सुराणा साहब ने समाज सेवा का सर्वोत्तम धरातल सच्ची शिक्षा के प्रचार-प्रसार में पाया । ___ वस्तुतः शिक्षा वह सोपान है, जिस पर आरूढ़ होकर मनुष्य सृजनात्मक शक्ति को प्राप्त करता है। सृजनात्मकता उन विशिष्ट गुणों में से एक अति महत्वपूर्ण गुण है, जो मनुष्य को पशु से पृथक करता है। समाज के सुगढ़ गठन एवं उत्थान हेतु व्यक्तियों की सृजन शक्ति को विकसित एवं दृढ़ करना परम आवश्यक है और इसका एकमात्र आधार शिक्षा है। श्रद्धेय सुराणा जी ने इस मर्म को हृदयंगम किया है, परन्तु साथ ही उन्होंने यह भी मौलिक चितन किया कि कोरा पुस्तकीय ज्ञान शिक्षा का सही स्वरूप नहीं हो सकता। उन की दृष्टि में कोरा पुस्तकीय ज्ञान व्यक्ति को मात्र 'साक्षर' बनाता है, शिक्षित नहीं। अतः आपने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ नैतिकता, अनुशासन चरित्र-निर्माण आदि को जोड़कर मणि-कांचन-संयोग प्रस्तुत किया है। वास्तव में शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करना, उसे भावी नागरिक, स्रष्टा और उत्पादक बनाना है।
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