Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 43
________________ --- -- - - - -- - --- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ जहण्णुक० एगस० । अणुक्क० जह० खुद्दाबंधपाढो समऊणो, उक्क. सगहिदी। णवरि अणंताणु चउक्करस अणुक्क० पदे० जह० एगस०। एवं सम्मत-सम्मामिच्छत्ताणं। २४. अणुदिसादि जाव सव्वसिद्धि ति सत्तावीसं पयडीणमुक्क० पदे० जहण्णुक० एगल. अणुक० जह० जहरणहिदी समयूणा, उक्क० सगुकस्सहिदी। णवरि अणंताणु० चउक्क० अणुक० जह० अंतोमु० सम्मत्त० उक० पदेसजहण्णुक्का एगस० । अणुक० जह० एस०, उक० सगहिदी । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल क्षुल्लकबन्धके पाठके अनुसार एक समय कम जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षासे जानना चाहिए। विशेषार्थ—यहाँ मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति अपने अपने भवके प्रथम समयमें सम्भव है। तीनों बेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति स्वामित्वके अनुसार यद्यपि भवके प्रथम समयमें सम्भव नहीं है, क्योंकि स्वामित्वप्ररूपणामें गुणितकर्माशविधिसे आकर जो द्रव्यलिंगके साथ मरकर और वहाँ उत्पन्न होकर विवक्षित वेदके परणकालके अन्तिम समयमें स्थित है उसके तीनों वेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति बतलाई है पर क्षुल्लकबन्धके पाठके अनुसार तीनों वेदों सहित उक्त सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण बतलाया है सो विचार कर घटित कर लेना चाहिए। मात्र अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय सामान्य देवोंके समान यहाँ भी बन जाता है, इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है। तथा यहाँ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय ही है, क्योंकि सम्यक्त्वका उद्वेलना और क्षपणाकी अपेक्षा तथा सम्यग्मिथ्यात्वका उद्वेलनाकी अपेक्षा एक समय काल प्राप्त हानेमें कोई बाधा नहीं आती, इसलिए इनकी प्ररूपणा अनन्तानुबन्धीचतुष्कके समान जाननेकी सूचना की है। यहाँ सब प्रकृयियोंकी अनु कृष्ट प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। २४. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए। विशेषार्थ— उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिके एक समयको अपनी अपनी जघन्य स्थितिमेंसे कम कर देने पर सत्ताईस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल प्राप्त होता है, इसलिए वह एक समय कम जघन्य स्थितिप्रमाण कहा है। मात्र जो वेदकसम्यग्दृष्टि अनन्तानुबन्धीकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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