________________
9
आसन लाने की कोशिश करें। इससे सीना और जंघा तक का हिस्सा ऊपर उठेगा। मात्र नाभि के आस-पास का हिस्सा जमीन पर सटा रहेगा। शेष शरीर का भाग उठा रहेगा। एक सप्ताह के अभ्यास के बाद शरीर को आगे-पीछे धकेलें। जिससे पूरे शरीर की मांसपेशियों की मालिस होगी। समय एवं श्वास
इसे आधे मिनट से लेकर तीन मिनट तक करें। पैरों को पकड़ते हुए खिंचाव देते समय श्वास भरें और आगे झूलते समय छोड़ें। स्वास्थ्य पर प्रभाव
धनुरासन, शलभासन की तरह ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी है। मेरुदण्ड लचीला बनता है। गर्दन और कटि भाग पर आई हुई चर्बी दूर होने लगती है। गर्दन, कंधे, कटि और हाथों पर खिंचाव आने से ये अवयव स्वस्थ सुन्दर और सुदृढ़ बनते हैं। धनुरासन से सीना, फेफड़े शक्तिशाली और सुदृढ़ बनते हैं। धनुरासन से भुजंगासन और शलभासन के लाभ स्वतः मिल जाते हैं । पैर के पंजों से लेकर सिर तक इस आसन से शरीर प्रभावित होता है। मुख्यरूप से यकृत, प्लीहा, गुर्दे, अग्न्याशय एवं आंतों की कार्य शक्ति बढ़ती है शेष सभी अङ्गों की मांसपेशियां और स्नायु सशक्त बनते हैं। नाभि/ (धरण) के टलने से शरीर में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां उत्पन्न होने लगती हैं। इससे नाभि अपने स्थान पर लौट आती है। शरीर स्वस्थ और चित्त प्रसन्न हो जाता है। ग्रन्थि तंत्र पर प्रभाव
पेन्क्रियाज, एड्रिनल, थायमस और थायराइड ग्रंथियां प्रभावित होती हैं। पेन्क्रियाज से इन्सुलीन नामक हार्मोन का स्राव होता है। जिससे शरीर में शर्करा का संतुलन बना रहता है। इसके अभाव में मधुमेह (Diabetes) हो जाता है। मधुमेह से मुक्ति के लिए धनुरासन बहुत उपयोगी है। निषेध
हर्निया, अल्सर, प्रोस्टेट, 'हार्ट ट्रबल' (हृदय रोग), उच्च रक्त चाप आदि व्याधियां हो तो धनुरासन न करें। जिसकी प्रोस्टेट ग्लैण्ड बढ़ी हुई हो वे व्यक्ति भी इस आसन को न करें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org