Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 73
________________ 64 जीवन विज्ञान-जैन विद्या लोग लड़ते हैं बारूद से, तो हिन्दुस्तानी लड़ते हैं तलवार से । तलवार और बारूद का मेल कहां ? अंग्रेजों के पास तोपें थीं, तब यहां बन्दूक आयी। हिन्दुस्तानी लोग दो-चार नहीं, कई पीढ़ियां पीछे चलते हैं। यह हारने का क्रम हमारे पराक्रम के अभाव में नहीं हुआ, यह हमारी शक्ति के अभाव में नहीं हुआ, किन्तु विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ने के कारण ऐसा हुआ है। हमारे मन में अतीत का मोह नहीं होना चाहिए । अतीत से हमें पूरा लाभ उठाना है । आज तक जितना विकास हुआ है, उससे पूरा लाभ उठाना है। लड़का हमेशा पिता के कंधे पर चढ़कर देखता है। पिता के कन्धे की ऊंचाई तो उसे सहज ही प्राप्त हो जाती उसकी ऊंचाई और ज्यादा होती है। हमारे यहां यह मान लिया गया कि शिष्य को गुरु से आगे नहीं बढ़ना चाहिए। गुरु ने जो कह दिया, उससे आगे की बात किसी को कैसे कहनी चाहिए ? मैं सोचता हूं कि विनीत शिष्य वह होता है जो गुरु ने कहा, उस बात को और आगे बढ़ा दे । गुरु की कही हुई बात को और अधिक विकसित कर दे, कि गुरु की बात को रटता ही रहे। जो ऐसा नहीं करता, मैं तो उसे बहुत विनीत या योग्य शिष्य नहीं मानता। न अभी भी दूसरों का अनुकरण चल रहा है। मौलिकता कम है । हिन्दुस्तान के अध्यापक और प्रशिक्षक इस बात की ओर ध्यान दें कि हमारे शिक्षण की पद्धतियों में मौलिकता आनी चाहिए। दूसरों का अनुकरण और नकल नहीं होनी चाहिए । अनुकरण आखिर अनुकरण होता है । 10 हिन्दुस्तान में आज भी अनुकरण की वृत्ति बहुत है । हमें सचमुच दूसरों के आधार पर नहीं, किन्तु अपने आधार पर प्रशिक्षण की योजनाएं बनानी चाहिए। मैंने दिल्ली में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के सचिव से कहा कि आपका यह जो प्रशिक्षण का क्रम चलता है एक वर्ष का, क्या यह दो वर्ष का नहीं हो सकता ? जो विषय चल रहा है, क्या उसके साथ मानसिक विकास और नैतिक विकास के प्रशिक्षण की बात को जोड़ा नहीं जा सकता ? आज हमारी बहुत सारी समस्याओं का कारण है मानसिक दुर्बलता । उन्होंने कहा - ' हमारे आयोग के जो बहुत सारे विदेशी लोग हैं, वे जो परामर्श देंगे, सरकार उन्हें मान्य करेगी।' हमारी बात वहीं समाप्त हो गई। अन्त में मैं यही कहना चाहूंगा कि शिक्षक अपने उत्तरदायित्व को समझकर राष्ट्र की भावी सम्पत्ति के नैतिक निर्माण में अपना योग दें। वे स्वयं कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होते हुए राष्ट्र को भी उस और अभिमुख करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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