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जीवन विज्ञान-जैन विद्या मुख्य प्रयोजन की ओर ध्यान दें। वे साधक की साधना में सहयोगी बनें, बाधक न हों। सम्प्रदाय को गौण स्थान देते हुए साधना को मुख्य स्थान दिया जाए। जैसे नौका मनुष्य को पार पहुंचाकर कृतकृत्य हो जाती है, वैसे ही सम्प्रदाय भी साधक को साधना की एक भूमिका तक पहुंचाकर कृतकृत्य हो जाएं। साम्प्रदायिक आग्रह ने न साधना को तेजस्वी होने दिया और न साधक भी उसके अभाव में लक्ष्य तक पहुंच पाए हैं।
___आचार्य भिक्षु की सत्य-शोध की वृत्ति बहुत प्रबल थी। वे सत्य के प्रति बहुत विनम्र थे। इसीलिए उनमें आग्रह नहीं पनपा। उन्होंने अपनी मर्यादाओं को अन्तिम नहीं माना। उन्हें भविष्य पर भरोसा था। इसीलिए उन्होंने मर्यादाओं के परिवर्तन और संशोधन की कुंजी भावी आचार्यों के हाथों में दे दी। उनकी तपःपूत चर्या, शुद्धनीति, आचार-निष्ठा, सद्भाव, संख्या की अपेक्षा गुणवत्ता को मूल्य देने की प्रवृत्ति, अनुशासन-प्रवणता आदि गुणों ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया कि हजारों-हजारों लोगों के लिए उनकी मर्यादाएं आप्त-वचन जैसे बन गयीं। वर्तमान की चिन्तनधारा
आचार्य भिक्षु की मर्यादाएं दूसरी शताब्दी के अन्तिम चरण में हैं। इस लम्बी अवधि में भारी परिवर्तन हुए हैं
1. राजनीतिक स्थितियों में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। राजतन्त्र के स्थान पर जनतन्त्र प्रतिष्ठित हो गया है।
2. साम्प्रदायिक स्थितियों में परिवर्तन हुआ है। आज हर सम्प्रदाय का युवक वर्ग कट्टरता की अपेक्षा पारस्परिक सद्भाव को अधिक महत्त्व देता है।
- 3. वैज्ञानिक गवेषणाओं और उपलब्धियों ने रूढ़ तथा बद्धमूल धाराणाओं में भी परिवर्तन ला दिया है। अब मान्यताओं को तार्किक और वैज्ञानिक आधार दिये बिना उन्हें गतिशील नहीं रखा जा सकता।
4.संचार-साधनों द्वारा भौगोलिक दूरी कम हो जाने के कारण वैज्ञानिक परिवर्तन भी बहुत हुआ है। पश्चिमी जगत् के उन्मुक्त विचारों ने हर व्यक्ति को मुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है।
इन सारी परिस्थितियों और उनसे प्राप्त होने वाले प्रभावों के आलोक में हमें मर्यादाओं पर विचार करना है, अपनी आस्था की परीक्षा करनी है, अपने आपको तोलना है।
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