Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 91
________________ 82 ध्यान रखना स्वाभाविक है । आप अपकारी पर जितना ध्यान देते हैं, उतना लोग उपकारी पर भी रहीं रखते।' यह आपकी अलौकिकता है । साम्यवाद के सिद्धान्त का पहले पहल मार्क्स ने प्रतिपादन किया था । वह समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री था । अपने सिद्धांत के प्रतिपादन के लिए वह भटकता रहा । उसे लोग देश से निकाल देते थे, मकान से निकाल देते थे । ऐसा होता है । जिन्होंने संसार को नया तत्त्व दिया है, उनको उनके ही भक्तों द्वारा अपमान सहना पड़ा है, कभी जहर भी पीना पड़ा है। __ सुकुरात महान साधु व तत्त्ववेत्ता था । आज भी पश्चिमी देशों में वह प्रथम कोटि का तत्त्वज्ञ माना जाता है । उसने वर्तमान रूढ़िगत धारणा के विरूद्ध सत्य की घोषणा की थी, इसलिए उसको जहर का प्याला पीना पड़ा। ईशु को फांसी पर चढ़ना पड़ा, क्योंकि उन्होंने तत्कालीन धर्म के विरूद्ध बातें कहीं थीं । भिक्षु स्वामी को भी बहुत सहना पड़ा था । 'अयोध्या से प्रकाशित एक पत्र में लिखा था । सब धर्माचार्यो ! चेतो। आचार्य तुलसी अणुव्रत के नाम पर सब पर छाए जा रहे हैं । उन्होंने राष्ट्रपति, शिक्षाशास्त्री, मंत्रियों और राजनयिको को अपने चंगुल में फंसा लिया हैं। एक दिन ऐसा आनेवाला है जब सब धर्मो का अस्तित्व मिट जाएगा । और एक ही धर्म रहेगा , वह होगा अणुव्रत।' धीर-पुरुष के सोचने का क्रम है - कभी कोई गाली देता है तो सोचता है, गाली ही दी, पीटा तो नही । कभी पीटने की नौबत बन जाती है, तब सोचता है प्राण तो नहीं लूटे, केवल पीटा ही है। __ प्राण लूटने पर धार्मिक या साधक सोचेगा, प्राण ही लूटा,पर धर्म तो नहीं लूटा । जो धीर पुरुष होता है, वह खैर मना लेता है। यह जो विधायक चिंतन की मनोवृति है, वह साधनाशील या तत्त्ववेत्तओं में प्राप्त होती है। ____7. अनासक्ति की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राण ध्वनि 2. कायोत्सर्ग 2 मिनट 5 मिनट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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