Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 92
________________ 3. नीले रंग का श्वास लें । अनुभव करें- श्वास के साथ नीले रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं । 4. विशुध्द - केन्द्र पर नीले रंग का ध्यान करें 5. शांति - केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें 6 अनुचिन्तन करें : 'अनासक्ति का विकास हो रहा हैं । पदार्थ के प्रति मूर्च्छा का भाव क्षीण हो रहा है' इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें । 7. महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें । स्वाध्याय और मनन - 3 मिनट 3 मिनट मैं पदार्थ की प्रकृति को जानता हूं । वह मेरे लिए उपयोगी है । उससे मुझे सुविधा मिलती है । किन्तु सुख और शांति नहीं । ये मेरे आन्तरिक गुण हैं। मैं संकल्प करता हूं कि मैं पदार्थ के प्रति मूच्छित नहीं बनूंगा । सदा अपने प्रति जागरूक रहूंगा । 10 मिनट 2 मिनट Jain Education International 83 ( अनुप्रेक्षा - अभ्यास के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है ।) भगवान् महावीर ने कहा है- इन्द्रियों के विषय क्षणमात्र सुख देते हैं । उसका परिणाम दुःखकर और लम्बा होता है। एक घटना तत्काल घट जाती है, पर उसका परिणाम दुःखकर और लम्बा होता है। एक घटना तत्काल घट जाती है, पर उसका परिणाम दीर्घकाल तक भोगना पड़ता है। किसी व्यक्ति ने कोई वस्तु खाई । उसका स्वाद जीभ पर आधा या एक मिनट तक रहता है। किसी का स्वाद 4-5 मिनट भी टिक जाता है, परन्तु उसी वस्तु का परिणाम वर्षों तक भोगना पड़ सकता है। परिणाम को जानते हैं, फिर ऐसा क्यों करते हैं ? जानते हुए भी मोहवश ऐसा कर लेते हैं। महाभारत में कहा है धर्म को जानते हुए भी मोहवश ऐसा कर लेते हैं । महाभारत में कहा है-धर्म को जानते हैं, फिर भी उसमें प्रवृति नहीं होती । अधर्म को जानते हैं लेकिन वह छोड़ा नहीं जाता। For Private & Personal Use Only कथाभट्ट का पुत्र अपने पिता के पास आया। अपनी समस्या सामने रखते हुए बोला - अभी-अभी जजमान के घर भोजन करके आया हूं। गले तक छक गया हूं। पेट पर आफरा आ गया है। पेट तन रहा है। इसी क्षण दूसरे का निमंत्रण और आ गया है। अब क्या करूं ? पिता ने पुत्र को सलाह दी - www.jainelibrary.org

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