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अनुप्रेक्षा
75 होता है, जनता के लिए कोई काम का नहीं बनता। कुछ व्यक्ति कन्दराओं में बैठकर अध्यात्म की साधना कर ले, पर शेष लोग बिलकुल वंचित रह जाते हैं
और उनके जीवन का कोई मार्ग निश्चित नहीं होता। जरूरी है समाज, जरूरी है संघ, जरूरी है संगठन और जरूरी है सम्प्रदाय। जो लोग संगठन का विरोध करते हैं, सम्प्रदाय का विरोध करते हैं, संघ का विरोध करते हैं, केवल अकेलेपन की बात करते हैं, वे भी सचाई को नहीं पकड़ पा रहे हैं। उनका भी आग्रह हो गया कि अकेला होना अच्छा है। एक-दो आदमी अच्छे हो गए। उससे क्या हुआ ? किन्तु जिस दुनिया में जीमा है, उसमें क्या अकेला व्यक्ति रह सकेगा? पहले तो मान लिया जाता था कि हिमालय की कंदरा में जाकर बैठ गया, अब वह शांति का जीवन जी सकता है। किन्तु एक ओर तो अणुअस्त्रों की बिभीषिका, दूसरी ओर सारा वातावरण प्रदूषण से व्याप्त इस स्थिति में क्या हिमालय बचा रह पाएगा? कभी संभव नहीं। आज हिमालय भी प्रदूषण से वंचित नहीं है। दुनिया का कोई भी कोना प्रदूषणसे वंचित नहीं है। कहां जाएगा? कौन-सी गुफा है ? कौन-सी कंदरा है जहां जाकर व्यक्ति अकेलेपन का अनुभव कर सके ? यह संक्रमण की दुनिया है। एक विचार यहां बैठे व्यक्ति के मन में पैदा होता है और उस विचार के परमाणु सारे संसार में फैल जाते हैं। न हिमालय बचता है और न कोई गुफा ही बचती है। इस संक्रमण की दुनिया में हमारे पास ऐसा कौन-सा कवच है कि हम अपने आपको सर्वथा बचा सकें। इस दिशा में वीतराग लोगों ने भी प्रयास किया कि दुनिया भी अच्छी बने, जनता भी अच्छी बने। अच्छे लोगों का संघ बने, समाज बने, समुदाय बने । यदि ऐसा नहीं बनता है तो विकट स्थिति पैदा हो जाती है। वीतराग को भी जीवन जीना होता है। मन पर प्रभाव चाहे न आए, किन्तु उसके शरीर पर तो प्रभाव पड़ेगा ही। वह मानसिक विचारों से बीमार नहीं पड़ेगा किन्तु दुनिया के वातावरण से तो बीमार बन सकता है। खान-पान से तो बीमार बन सकता है। तो जिस दुनिया के बीच में जीना है, उसको वीतरागना की दिशा में प्रेरित करना, यह वीतराग का भी धर्म और कर्त्तव्य होता है। इसलिए संघ-सम्प्रदाय कोई बुरी बात नहीं है। वह बहुत आवश्यक है किन्तु केवल संघ, संगठन और सम्प्रदाय में ही हमारी दृष्टि अटक जाए, तो यह बुरी बात है। हमें संघ और सम्प्रदाय में जो सचाई है, जो सत्य है, उसका अवतरण करना है, निश्चयदृष्टि का आलम्बन लेना है, अध्यात्म को विकसित करना है। नहीं तो यह थोथा हड्डियों का ढांचा भर रह जाएगा। वहां सत्य का संचार नहीं होगा। आदमी मर
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