Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 82
________________ अनुप्रेक्षा.. 73 आज एक नई कठिनाई पैदा हो गई है। आज के लोग धर्म और सम्प्रदाय या मजहब को एक मान बैठे हैं। लोग कह देते हैं, धर्म के कारण कितनी लड़ाइयां लड़ी गई ? कितना रक्त बहा ? कितने देश उमड़े ? धर्म के कारण ऐसा. नहीं हुआ और न होगा। यह सब होता है सम्प्रदाय के कारण। धर्म और सम्प्रदाय इतने घुलमिल गये कि जो सम्प्रदाय के नाम पर घटित हुआ, वह सारा धर्म पर आरोपित हो गया। इसलिए धर्म को बदनाम होना पड़ा। यदि कोई आदमी धर्म तक पहुंच जाए तो वहां न लड़ाई है, न द्वेष है और न झंझट है। धर्म का अर्थ है, राग-द्वेष-मुक्त जीवन जीना । जब कोई भी आदमी राग-द्वेष-मुक्त जीवन जीएगा तो लड़ाइयां कहां उभरेगी? लड़ाइयां धर्म के कारण नहीं, सम्प्रदाय के कारण हुई हैं, होती हैं । सम्प्रदाय के आवरण में बेचारा धर्म आवृत हो गया। इसीलिए आज धर्म की भाषा समझ में नहीं आ रही है। यह एक समस्या है। इस समस्या को सुलझाने के लिए हमने एक प्रक्रिया प्रारम्भ की। उसमें धर्म शब्द का उपयोग नहीं किया। मैं मानता हूं कि धर्म शब्द बहुत ही मूल्यवान है। उसका अर्थ गम्भीर है। किन्तु परिस्थितिवश उसका अर्थ बदल गया। भाषाशास्त्र के अनुसार शब्दों के अर्थ का उत्क्रमण और अपक्रमण होता है। अर्थ का हस और विकास होता है। आज एक दृष्टि से धर्म शब्द सम्प्रदाय का द्योतक बन गया। उसका अर्थ भी कुछ बदल गया। इसीलिए नये शब्द के चुनाव की अपेक्षा हुई। हमने सोचा कि जीवन-विकास के लिए कोई ऐसा शब्द चुना जाए जो धर्म की मूल भवनाओं का स्पर्श करने वाला हो। जीवन में धर्म का विकास, अध्यात्म का विकास और नैतिकता का विकास करने वाला शब्द हो। ये शब्द आज विवाद का विषय बन गए हैं, इसलिए नये शब्द को ढूंढना चाहिए जो आज के मानस का स्पर्श कर सके, पर कोई प्रतिक्रिया पैदा न करे। इन दृष्टियों से सोचने पर एक शब्द जंचा और वह है-'जीवन-विज्ञान।' इसकी प्रक्रिया का किसी धर्म-विशेष या सम्प्रदाय-विशेष से सम्बन्ध नहीं है। इसका सीधा सम्बन्ध है, जीवन से। प्रत्येक प्राणी को जीवन-विज्ञान का अनुभव होना चाहिए। जीवन के साथ विज्ञान शब्द इसलिए जुड़ता है कि जीवन के अपने नियम हैं। प्रत्येक वस्तु के साथ नियम जुड़े हुए हैं। कुछ हमें ज्ञात हैं, कुछ अज्ञात हैं। सारे नियम हम नहीं जानते। अनेक नियम अज्ञात ही रह जाते हैं। जैसे-जैसे विकास हो रहा है अज्ञात नियम ज्ञात होते जा रहे हैं। मनुष्य इन ज्ञात नियमों का उपयोग करता है। किन्तु जो ज्ञात हुआ है, वह एक बिन्दु मात्र है, अज्ञात का समुद्र अभी भी अछूता ही पड़ा है। ज्ञात अल्प है, अज्ञात अनन्त है। हमारे जीवन के भी अनन्त नियम हैं। जीवन विकास, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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