Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 81
________________ 72 जीवन विज्ञान-जैन विद्या 5. संप्रदाय-निरपेक्षता की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राण ध्वनि 2 मिनट 2. लयबद्ध दीर्घश्वास 5 मिनट 3. भस्त्रिका 5 मिनट 4. कायोत्सर्ग 5 मिनट 5. संकल्प 5 मिनट 'मैं साम्प्रदायिक कट्टरता से बचूंगा। मैं विभिन्न मान्यताओं और सम्प्रदायो के प्रति सद्भावना का विकास करूंगा। ___ अभ्यास पद्धति- आनन्द-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करें। फिर इस संकल्प की 15 मिनट तक पुनरावृत्ति की जाए-पांच मिनट उच्चारण पूर्वक, पांच मिनट मंद उच्चारण पूर्वक और पांच मिनट मानसिक अनुचिंतन के रूप में। 6. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान संपन्न करें। 2 मिनट स्वाध्याय और मनन (अनुप्रेक्षा-अभ्यास के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है।) ___ भगवान महावीर ने तीर्थ की स्थापना की। साधना को सामुदायिक रूप दिया, फिर भी वे सम्प्रदाय और धर्म को भिन्न-भिन्न मानते थे। उन्होंने कहा-'एक व्यक्ति सम्प्रदाय को छोड़ देता है पर धर्म को नहीं छोड़ता। एक व्यक्ति धर्म को छोड़ देता है, पर सम्प्रदाय को नहीं छोड़ता।' सम्प्रदाय धर्म की उपलब्धि में सहायक हो सकता है। इस दृष्टि से उन्होंने संघबद्धता को महत्त्व दिया किन्तु धर्म को सम्प्रदाय से आवृत नहीं होने दिया। उन्होंने कहा-जो दार्शनिक लोग कहते हैं कि हमारे संप्रदाय में आओ, तुम्हारी मुक्ति होगी अन्यथा नहीं, वे भटके हुए हैं और वे भी भटके हुए हैं, जो अपने-अपने सम्प्रदाय की निन्दा करते हैं। धर्म की आराधना सम्प्रदायातीत होकर, सत्याभिमुख हो कर ही की जा सकती है। सम्प्रदाय एक साधना है, जीवन-यापन की परस्परता या सहयोग है। वह व्यक्ति को प्रेरित कर सकता है, किन्तु वह स्वयं धर्म नहीं है। सम्प्रदाय और धर्म को भिन्न-भिन्न मानने वाले साधक के लिए सम्प्रदाय धर्म-प्रेरक होता है, धर्म-साधक नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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