Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 79
________________ जीवन विज्ञान - जैन विद्या राजकुमार बोला- 'माता-पिता ! जंगल में रहने वाले पशु बीमार हो जाते हैं। कौन उनकी परिचर्या करता है ? कौन उन्हें भोजन - पानी लाकर देता ? रुग्ण पड़े रहते हैं। जब स्वस्थ होते हैं तब जंगल में जाकर खा-पी लेते हैं । जब ये पशु भी ऐसा कर सकते हैं तो मैं मनुष्य हूं, ऐसा क्यों नहीं कर सकूंगा ?" यह एक महत्त्वपूर्ण खोज थी स्वावलंबन और स्व-निर्भरता की । 70 अमेरिका में एक संस्थान ऐसा है जिसके सदस्य दवा का भी प्रयोग नहीं करते । वे कोई दवा नहीं लेते। ऑपरेशन की आवश्यकता होने पर भी ऑपरेशन नहीं कराते । सदस्य थोड़े हैं पर जो हैं, वे कट्टरता से इसका पालन करते हैं । यह कैसे संभव हो सकता है कि बीमारी हो और चिकित्सा न हो ? चिकित्सा हो कसती है पर वह बाहरी वस्तु से न हो, स्वावलंबन और स्वनिर्भर होकर अपनी वस्तु से चिकित्सा करो, बाह्य वस्तु से चिकित्सा मत करो, परवस्तु से चिकित्सा मत करो । शरीर में रोग पैदा होता है तो शरीर में नीरोगता की भी पूरी व्यवस्था है। आसनों का विकास इस दिशा में हुआ था । आसनों का प्रयोग करो, चिकित्सा हो जाएगी। श्वास और विभिन्न मुद्राओं का प्रयोग रोग निवारण की दीशा में हुआ था। इसमें नाड़ी - विज्ञान का पूरा उपयोग किया गया था। पाचन कमजोर है। भोजन के बाद वज्रासन में बैठो, पाचन की दुर्बलता मिट जाएगी। भोजन के बाद दाएं नथुने से पन्द्रह मिनट तक श्वास लो, पाचन स्वस्थ होने लगेगा। महामुद्रा का प्रयोग करो, पाचन ठीक होने लगेगा। प्रत्येक समस्या के समाधान के लिए आसन और नाड़ियों का प्रयोग तथा स्वर का प्रयोग खोजा गया था। हजारों आसनों का प्रयोग होने लगा। शारीरिक बीमारी हो तो आसनों का प्रयोग किया जा सकता है और मानसिक बीमारी के लिए भी आसनों का प्रयोग किया जा सकता है। ये सारे तथ्य स्वावलंबन और आत्मानुशासन के लिए खोजे गए थे युवक और स्वावलम्बन युवकों की शक्ति आज एक समस्या बन रही है । वह ध्वंस की ओर जा रही है। सारे देश की स्थिति को देखिए । भारत के युवकों की शक्ति जितनी निर्माणात्मक कार्यों में नहीं लग रही है, उससे कहीं अधिक हिंसात्मक कामों में लग रही है। आए दिन समस्याओं का सामना सबको करना पड़ रहा है। युवक Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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