Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ 12 जीवन विज्ञान-जैन विद्या वाला स्राव थायराक्सिन हार्मोन है। यह हार्मोन शरीर के विकास और ास का जिम्मेदार होता है थायरायड के स्रावों में कमी होने से व्यक्ति ठिगना रहता है, उसकी लम्बाई बढ़ नहीं पाती। सर्वांगासन के अभ्यास से थायराक्सिन के हार्मोन आवश्यकता के अनुरूप निकलने लगते हैं। विशुद्धि केन्द्र के विकास से कला, काव्य, वाणी और स्वरों की मधुरता उपलब्ध होती है। थायराक्सिन के स्रावों की कमी का सीधा प्रभाव स्वभाव पर होता है। व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगता है। मोटापा, बाल झड़ना, पेशियों की कमजोरी, आलस आदि बढ़ने लगते हैं। सर्वांगासन इन सब का सीधा समाधान देता है। स्वभाव में सहिष्णुता बढ़ने लगती है। बाल झड़ने रुक जाते हैं। पेशियों की शक्ति बढ़ने से आलस दूर होने लगता है। थायराक्सिन के स्रावों की अधिकता, चयापचय की क्रिया, ऊतकों द्वारा दहन क्रिया शरीर का तापक्रम, पसीना निकलने की क्रिया तीव्र मात्रा में होने लगती है । अनिद्रा, नेत्र गोलक बाहर आना, विकृत मुखाकृति होना आदि रोगों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं । सर्वांगासन इन सबको संतुलित बनाता है जिससे व्यक्ति का शरीर, मन और भाव संतुलित बनने लगते हैं। पेराथायराइड ग्रथि से पेराथायराक्सिन हार्मोन निकलते हैं । इनके असंतुलन से कैलशियम, फासफोरस जैसे तत्त्वों की कमी हो जाती है । जिससे हड्डियों का विकास रुक जाता है । अधिक हार्मोन स्राव होने से भी इनका असंतुलन होने लगता है । शरीर की लम्बाई बढ़ने के कारण हड्डियाँ दुर्बल होने लगती है । हल्की-सी चोट से वे चूर-चूर हो जाती है । सर्वांगासन के प्रयोग से पेराथायराक्सिन का संतुलन बना रहता है । सामान्यरूप से पिच्यूटरी, पिनियल, हायपोथेलेमस ग्रन्थियां भी इस आसन से प्रभावी होती हैं । सर्वांगासन से सभी अंग और पूरा ग्रन्थि तंत्र प्रभावित होता है । सर्वांगासन से रक्त-संचरण तंत्र शक्तिशाली और स्वस्थ बनता है । जिसका परिणाम सम्पूर्ण शरीर को मिलता है । शरीर की सुघड़ता एवं सुन्दरता इससे बढ़ती है । सचमुच सर्वांगासन जीवनी-शक्ति को संतुलित बनाए रखने वाला महत्त्वपूर्ण आसन है। समय और सावधानी आधा मिनट से प्रारम्भ करें प्रति सप्ताह आधा-आधा मिनट बढ़ाएं । तीन मिनट पर अभ्यास को स्थिर करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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