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यौगिक शारीरिक क्रियाएं
(ग) यौगिक शारीरिक क्रियाएं
विश्व का श्रेष्ठतम और जटिलतम यदि कोई यंत्र हो सकता है तो वह मानव का शरीर है। मानव-शरीर की संरचना इस प्रकार से निर्मित हुई कि जिसे निरन्तर सक्रिय एवं व्यवस्थित बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। उसकी संपूर्ति यौगिक क्रिया करती है। शरीर की इस सक्रियता एवं स्वस्थता को बनाए रखकर ही साधना के परिणामों को प्राप्त कर सकते हैं। शरीर को सक्रिय और व्यवस्थित बनाने की दृष्टि से यौगिक शारीरिक क्रियाएं प्रेक्षा-प्रविधि का महत्त्वपूर्ण अंग है। देश, काल और समाज की परिस्थितियों से गजरते व्यक्तिके लिए यह कठिन होता जा रहा है कि वह योगासन और व्यायाम में अधिक समय लगा सके। किसी के पास समय का अभाव नहीं होता तो उसे स्थान की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बढ़ती शहरी सभ्यता ने मनुष्य के जीवन को प्रकृति से दूर कर दिया है। उसके पास शारीरिक श्रम करने के लिए न खेत है और न घूमने के लिए खुला मैदान है कि जहां शुद्ध प्राणवायु को ग्रहण कर वह स्वस्थता को उपलब्ध कर सके। उसे तंग बस्तियों में भीड़ भरे रास्तों से गुजरना होता है। आवास के लिए उसे छोटे-छोटे फ्लेटों में पूरे परिवार का गुजारा करना होता है। इससे भी अधिक आज व्यक्ति इतना अनियमित जीवन जीने लगा है कि चाहने के बावजूद भी योगासन, प्रेक्षा-ध्यान एवं ऐसी कोई अन्य प्रविधि के लिए अपने समय को लगा नहीं पाता। क्रियाओं का प्रभाव
शारीरिक, मानसिक पीड़ाओं से ग्रस्त कुछ लोग इस अभ्यास क्रम की ओर प्रवृत्त होते हैं, किन्तु निरन्तरता बनाए रखना उनके लिए कठिन हो जाता है। समय के अभाव में आसनों के लाभ से वंचित न रहे, उनके लिए सूक्ष्म क्रियाएं आवश्यक हैं। यौगिक शारीरिक क्रियाएं शरीर और मन दोनों को स्वस्थ बनाती हैं। जो व्यक्ति शरीर की दृष्टि से रुग्ण वृद्ध अथवा अशक्त है, उसके लिए भी
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