Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 65
________________ 56 जीवन विज्ञान-जैन विद्या जिन लोगों में दायित्व की चेतना जागृत हो जाती है, वे व्यक्ति उन बातों से ऊपर उठ जाते हैं। वे अपने चरित्र का निर्माण दायित्व के आधार पर करते हैं। जिन्हें दायित्व की अनुभूति हो जाती है। उन्हें दायित्व सौंपकर बदलने का प्रयत्न किया जाता है। लोग तो सोचते हैं कि यह व्यक्ति उसके योग्य नहीं था, फिर इस पर यह दायित्व क्यों डाला गया ? किन्तु मैं यह अनुभव करता हूं कि दायित्व डालने पर उस व्यक्ति में सचमुच परिवर्तन आ जाता है। परन्तु दायित्व की अनुभूति अवश्य होनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति जिसे दायित्व का अनुभव न हो, उसमें भी परिवर्तन आने लग जाता है। चरित्र-निर्माण की दूसरी श्रेणी का हेतु हैदायित्व-बोध। युवक का कर्तव्य-बोध हम धर्म की बात सोचते हैं तो वह देशातीत और कालातीत बात होती है। उसमें देश और काल की कोई मर्यादा नहीं होती। न कोई बालक, न कोई बूढ़ा और न कोई युवक। किन्तु जहां व्यवहार की क्रियान्विति का प्रश्न होता है, वहां देश को भी मानना होता है और काल को भी मानना होता है। उन दोनों से हटकर हम व्यवहार को नहीं चला सकते, कोई भी क्रियान्विति नहीं कर सकते। युवक शब्द भी एक काल की संज्ञा को सूचित करता है। यौवन तो अवस्थाओं के बीच एक शक्ति की अवस्था है। बालक में क्षमताएं होती हैं किन्ः विकसित नहीं होती, क्योंकि उसका शरीर-तंत्र समर्थ नहीं होता। बूढ़े में शरीरतंत्र और क्षमताएं दोनों विकासातीत हो जाती हैं, विकास से परे चलने लग जाती हैं। उसके शरीर की बहुत सारी कोशिकाएं, मस्तिष्क की बहुत सारी कोशिकाएं खप चुकती हैं और शरीर का तन्त्र शिथिल हो जाता है। उसमें अनुभव होते हुए भी कार्य-क्षमता समाप्त हो जाती है। इन दोनों के बीच की अवस्था होते हुए भी कार्य-क्षमता समाप्त हो जाती है। इन दोनों के बीच की अवस्था है-यौवन । युवा दोनों के बीच में है। उसमें शरीर की क्षमता भी है और क्रियान्विति की क्षमता भी है। इसीलिए युवक एक शक्ति का या शक्ति की अभिव्यक्ति का स्रोत होता है। इसलिए युवक से बहुत आशाएं होती हैं। कोई भी देश, कोई भी समाज, कार्यक्षमता का जहां प्रश्न है, वहां युवकों को आगे रखता है। चाहे देश-रक्षा का कार्य हो, चाहे समाज-सेवा का कार्य हो, चाहे और कोई दूसरा, तीसरा, चौथा कार्य हो, युवक की अपेक्षा होती है। किन्तु आप जानते हैं कि युवक के लिए भी बहुत कठिनाई है। कठिनाई इसलिए कि एक ओर उसके शरीर के सारे उपकरण बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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