Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 69
________________ 60 जीवन विज्ञान-जैन विद्या भार,महंगाई का भार, कितनी समस्याओं का भार, इन्कमटैक्स का भार, मृत्युटैक्स का भार, सारे भार ढोते-ढोते छोटे-से दिमाग को परेशानी हो रही है । आज के युवक में कहां है अध्ययन ? मैं मानता हूं कि क्रियान्विति के लिए सबसे पहले विचार-विकास ही आवश्यकता होती है। बौद्धिक क्षमता बढ़ती है, तो सारी बातें बढ़ती हैं । आज के संसार में बौद्धिक विकास चरम सीमा को छू रहा है । प्रतिदिन नए-नए आयाम खुल रहे हैं । साधारण-से-साधारण विषय पर इतना अन्वेषण और सूक्ष्म अध्ययन हुआ है कि एक कोषीय जीव जैसे साधारण से लगने वाले विषय पर 'चेम्बेर डिक्शनरी' जैसी बीस-बीस पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं । जो व्यक्ति आज के विचार और विकास के सम्पर्क में नहीं रहता, अगर दो सप्ताह तक वह उससे कट जाता है तो वह पिछड़ जाता है। इतनी तेज गति से और इतनी तेज रफ्तार से मनुष्य का ज्ञान बढ़ता चला जा रहा है । उस स्थिति में यदि अध्ययन की उपेक्षा की जाती है तो व्यक्ति युग के साथ कैसे चल सकता है ? कैसे हमारा युग-बोध स्पष्ट हो सकता है ? नहीं हो सकता । आज का युवक पढ़ता तो है किन्तु ऐसे उपन्यास जो रोमांटिक हैं, ऐसे उपन्यास जो जासूसी से भरे-पूरे हैं। वे कहानियां जो सेक्स से भरी-पूरी हैं, जीवन के विकास में इनका कोई बड़ा योगदान नहीं होता है। जब तक अध्ययन की गम्भरता नहीं आती, तब तक कोई बड़ी बात नहीं हो सकती। आप निश्चित मानिए, ऊंचाई हमेशा गंभीरता के साथ पैदा होती है। बड़े भवन को खड़ा करना है, पचास मंजिल और सौ मंजिल का प्रासाद खड़ा करना है, तो गहराई में जाना होगा। हो सकता है कि आप उस मकान को बालू की नींव पर खड़ा कर दें या बिना नींव के खड़ा कर दें, किन्तु वह टिकेगा नहीं, ढह पड़ेगा । मजबूत मकान के लिए मजबूत नींव की आवश्यकता होती है। गहराई के बिना ऊंचाई संभव नहीं है। हम तीन आयामों में फैलते हैं- लम्बाई, ऊंचाई और चौड़ाई इन सारी बातों में फैलने के लिए गहराई की बहुत जरूरत है और गहराई विचार विकास के बिना नहीं आ सकती । आज तक के इतिहास में आप देखेंगे कि जहां विचारों में गहराई नहीं आयी, किसी भी व्यक्ति ने विकास नहीं किया-चाहे भैतिक क्षेत्र में, चाहे आध्यात्मिक क्षेत्र में । अध्यात्मिक क्षेत्र में रहने वाले जिन लोगों ने ध्यान की गहराई में जाने का प्रयत्न नहीं किया, उन्होंने कोई भी नई बात नहीं दी। आज तत्त्वज्ञान का जितना विकास हुआ है, सत्य का जितना प्रकटीकरण हुआ है, वह आध्यात्मिकता के द्वारा, उन आध्यात्मिक लोगों ने किया, जो ध्यान की गहराई में चलते चले गये, डुबकियां लेते रहे, और गहरे-से-गहरे उतरते चले गये भौतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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