Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ अनुप्रेक्षा 59 ही हिन्दुस्तानी युवक शायद पांच सप्ताह में नहीं कर सकता। बात से आप किसी दूसरे को राजी कर सकते हैं। बातों से आपको हम राजी कर सकते हैं और आप हमें राजी कर सकते है। कोरी बातें - ही बातें चलेंगी, क्रियान्विति नहीं होगी, कोई कार्य नहीं होगा तो कुछ भी नहीं बनेगा । हमारी शक्ति नष्ट हो जाएगी। यदि आप विसर्जन करना चाहते हैं, समर्पण करना चाहते हैं तो उस मन का समर्पण करें जिसके द्वारा धन देना चाहते हैं, सेवा देना चाहते हैं और श्रम देना चाहते हैं । उस मन का विसर्जन कर दें, सब अपने आप हो जाएगा। यदि उस मन का विसर्जन नहीं हुआ; मन का समर्पण नहीं हुआ तो सेवा देते समय भी सेवा नहीं दे सकते। क्योंकि मन नहीं दिया गया । मन दिए बिना कुछ नहीं हो सकता । न सेवा दी जा सकती है, न श्रम दिया जा सकता है, न धन दिया जा सकता है। धन देते समय भी आपका सारा गणित सामने आ जाता है कि इतना दे दूंगा तो इतना कम हो जाएगा। यह कैसे होगा ? काम किससे चलेगा ? तो सही बात हैअपने मन के नियोजन की। यदि आपका मन उसमें नियोजित हो जाए तो सारी बातें सुलझ सकती हैं। मन का नियोजन न हो, मन का विसर्जन न हो तो हर काम के सामने तर्क खड़ा हो जाएगा और उस तर्क में आप इस प्रकार उलझ जाएंगे जैसे मकड़ी अपने जाल में उलझ जाती है। तो दूसरी बात है तीर्थ- सेवा का संकल्प। पहली बात है आत्म- सेवा का संकल्प - स्व-निर्माण । दूसरी बात है तीर्थ सेवा का संकल्प - जन - निर्माण | एक बात याद आ रही है, दादा धर्माधिकारी की। उन्होंने एक बात कही, 'यदि अणुव्रत वाले या जैन लोग समता का प्रयोग करें, एक ऐसा कारखाना, एक ऐसा उद्योग और फैक्टरी चलाएं जिसमें कोई मालिक न हो और मजदूर न हो, सब समभागी हों, काम करने वाला हर व्यक्ति उसे संचालित करने वाला हो, उसका डायरेक्टर, उसका श्रमिक सब- -के-सब समभागी हों। न कोई स्वामी हो, न कोई सेवक । न कोई मिल मालिक हो, न कोई मजदूर। अगर एक भी ऐसा प्रयोग हो जाय तो हम देखेंगे कि अध्यात्म में आज भी प्राण है और अध्यात्म में आज भी शक्ति है | अध्यात्म और अपरिग्रह का आज भी प्रयोग किया जा सकता है । आध्यात्मिक समतावाद का प्रयोग किया जा सकता है और यदि वह नहीं किया जा सकता तो फिर अध्यात्म, अपरिग्रह और समता- इन शब्दों को सदा के लिए दफना देना चाहिए। क्यों भार ढोते फिरेंगे इनका, यदि कोई प्रयोग नहीं हो सकता है तो ? क्या केवल शब्दों का भार ढोना है ? आगे ही सिर पर बहुत भार है और बेचारे गृहस्थों पर कितना भार है ! कमाई का भार, परिवार को चलाने का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94