Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 32
________________ यौगिक क्रियाओं को प्रारम्भ करने से पूर्व अपने इष्ट को नमन करें । प्रेक्षा- ध्यान साधक का इष्ट है " अर्हं " अर्थात् अनंत शक्ति - संपन्न चैतन्य । अर्ह वन्दन के लिये वन्दना आसन में पंजों के बल ठहरें । विनम्रता से हाथ जोड़ें। श्वास भरें। 'वन्दे' कहते समय मेरुदण्ड सीधा रखें। अर्हम्. बोलते समय नीचे भूमि-तल पर मस्तक लगाएं। श्वास का पूर्ण रेचन करें। धीरे-धीरे पूरक करते हुए पूर्व अवस्था में आ जाए। इस क्रिया को तीन बार करें। इससे स्मृति विकसित होती है। दीर्घश्वास का अभ्यास बढ़ता है। पहली क्रिया - मस्तक के लिए मस्तक से प्रारम्भ होने वाली यह प्रथम क्रिया है। पैर के दोनों पंजे मिलाकर खड़े हों । दृष्टि सम्मुख रखें। हाथ जंघा से सटे हुए रहे। चित्त को मस्तक पर केन्द्रित करें । नौ बार श्वास-प्रश्वास करें । अनुभव करें कि मस्तिष्क के एवं प्राणमय बन रहे हैं । 'स्नायु सक्रिय ललाट, कनपटी और मस्तिष्क के स्नायुओं को खिंचाव देकर शिथिल छोड़ दें। यह मस्तिष्क की क्रिया है । इससे मस्तिष्क के दोषों का निरोध होता है। स्मृति एवं मस्तिष्क की शक्ति का विकास होता है । Jain Education International • For Private & Personal Use Only 23 A दूसरी क्रिया- आंख के लिए आंखों की इस क्रिया में गर्दन सीधी और स्थिर रखें। क्रिया के समय गर्दन को किसी प्रकार की गति न दें। आंखों की इन क्रियाओं को सात भागों में विभाजित किया गया है www.jainelibrary.org

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