Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ 4 1. पूरक करते हुए आंखों के गोलकों को ललाट की ओर ले जाते हुए आकाश को देखें। रेचन करते हुए आंखों के गोलकों को नीचे की ओर लाते हुए पंजों की ओर देखें। इसकी पांच आवृत्ति करें। 2. पूरक करते हुए आंखों के गोलक को दायीं ओर ले जाएं। रेचन करते हुए गोलक को बायीं ओर ले जाएं । जितना पीछे की ओर देख सकें, देखें। इसकी पांच आवृत्ति करें। . 3. पूरक कर दोनों गोलकों को दाहिने कोण में ऊपर ले जाएं। रेचन करते हुए गोलकों को बाएं कोण में ले जाएं। यह तिरछी कोणात्मक क्रिया है। इसे पांच बार दुहराएं। 4. पूरक कर दोनों गोलक को बाएं कोण में ऊपर ले जाएं। रेचन कर गोलक को दाएं कोण में नीचे लाएं। पांच आवृत्ति करें। ____5. पूरक कर कुम्भक करें, आंखों के गोलको को गोलाकार दाएं से बाएं घुमाएं, पांच आवृत्ति करें। इसी क्रिया को बाएं से दाएं गोलाकार घुमाएं। 6. रेचन कर कुम्भक करें। आंखों को तेजी से टिमटिमाएं। पूरक करें तथा पुनः रेचन कर कुम्भक करें। तीव्रता से आंखों को टिमटिमाएं। 7. दोनों हथेलियों को परस्पर घर्षण कर गर्म करें। हल्के स्पर्श से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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