Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ 20 सातवीं क्रिया-हाथों के लिए (अ) हाथों को सामने की ओर सीधा फैलाएं । पूरक करते हुए छोटी अंगुली से एक-एक अंगुली को सक्रिय करें । । (ब) रेचन करके फिर पूरक करें। हथेली एवं कलाई तक के भाग को पांच बार ऊपर नीचे करें तथा कलाई को गोल घुमाएं, हाथ सीधा रखें । (स) पांच बार कुहनियों को मोड़ें और सीधा करें । (द) अन्त में पूरे हाथ को सीधा करके गति से दाएं-बाएं घुमाएं । प्रत्येक क्रिया की पांच आवृत्ति करें। . लाभ- हाथों, अंगुलियों की शक्ति बढ़ती है । आठवीं क्रिया-सीने और फेफड़े के लिए श्वास को भरें हाथों को शेर के पंजे की तरह सामने की ओर झटके के साथ रेचन करते हुए फैलाएं । हाथों को पूरक करते हुए सीने की तरफ ऐसे लाएं जैसे कि पूरी ताकत से कोई रस्सा खींच रहे हो । फिर हाथों को सीने से कंधे तक फैलाएं । तीन बार करें। .. लाभ- सीने और फेफड़े की शक्ति बढ़ती है । र ब www.in Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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